Wednesday 4 March 2015

भावनाओं के सैलाब

भावनाओं को सैलाब यूँ तो नहीं कहा जाता
शोर जोर कुछ तो है जो तबाह कर जाती है

किनारों के टूटने से पहले लौहबंध डालदेना
मौसम बिगड़ने से पहले बाँध लेना, बेहतर!

बांधो न गर किनारो को स्वछंद इस नदी के
बूंदों के मौसम में किनारे भी बहा लेजाती है

समंदर मिलने से पहले ये लहरें ही डुबो न दें
संभल के चलाना नाव, के जल में हलचल है 

No comments:

Post a Comment