भस्मीभूत होते कैंचीचाकू
लौह कणों ने सुलगते हुए
जलते अंगारे बिखेरते हुए
कहा अंतिम बार छिटकते................
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सर्वदा से तू कैंची, मैं चाकू
समगुणरूप तरंगे वर्गीकृत
शक्ति/लिंग/सौंदर्य/सौष्ठा
फिर भी दौड़ते चलते संग.................
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अज्ञानता नहीं परिलक्षित
योजना-ही-योजना है यहाँ
सफल-कामना में असफल
बंटे औ भी बंटते जाते सब..................
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