प्रयासयुक्त रंगहीन रेखांकित चित्र है आधेअधूरे
नृत्य की समस्त विधा, सरल-प्रवाह बिना अधूरी
जितना सोचोगे अधूरी है कहनेसुनने की परंपरा
जितना लिखोगे होंगे, शास्त्र और गीतबोल अधूरे
जितना देखोगे मन को अतृप्त भयभीत पाओगे
जितना संभवस्पर्श स्मृति-झोली में होगा ; आधा
जितना जिव्हा प्रयासरत होगी , होगी कर्म युक्त
अथक भ्रमण बाद भी दो फ़ीट जमीं ही है पैरोंतले
बेचैन जी तो न सका, तू मर के भी मर न पायेगा
महलों के स्वामी सोता भी तू भय-भीत जगा हुआ
भासता तो जागा सा परन्तु सोया है , चिरनिंद्रा में
जागना ही तो जाग! हो जा उस महायोगी समदृश्
कि सोये भी तू यूँ नींद तेरी हो चिर जागृत तत्सम
ओम
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