Thursday 12 March 2015

फिर भी अधूरा


प्रयासयुक्त रंगहीन रेखांकित चित्र है आधेअधूरे 

नृत्य की समस्त विधा, सरल-प्रवाह बिना अधूरी 


जितना सोचोगे अधूरी है कहनेसुनने  की परंपरा


जितना लिखोगे होंगे,
 शास्त्र और गीतबोल अधूरे

जितना  देखोगे मन को अतृप्त भयभीत पाओगे 


जितना संभवस्पर्श स्मृति-झोली में होगा ; आधा 


जितना जिव्हा प्रयासरत होगी , होगी कर्म युक्त


अथक भ्रमण बाद भी दो फ़ीट जमीं ही है पैरोंतले


बेचैन जी तो न सका, तू मर के भी मर न पायेगा

महलों के स्वामी सोता भी तू भय-भीत जगा हुआ 


भासता तो जागा सा परन्तु सोया है , चिरनिंद्रा में 


जागना ही तो जाग! हो जा उस महायोगी समदृश्


कि सोये भी तू यूँ नींद तेरी हो चिर जागृत तत्सम 


ओम 

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