Wednesday, 18 March 2015

आपाधापी



गुठी हुई रस्सी के 
उधड़े हुए धागे से 
धागे में दौड़ते हुए 
तरंग से बहते हम
.
बिखरे छितरे हुए 
चिटचिट आवाज 
तरंगो में बंटे हुए 
जीवनदौड़ में हम
.
चिंगारियों..सदृश 
उभरते औ मिटते 
सुलगते भस्म से 
दौडते इस छोर से 
उस छोर तक हम

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