Wednesday, 4 March 2015

और उसने कहा



पूछा किसी ने अंतरंगता में उस से
कैसे जुडु मैं तुझसे !
उसने कहा-" शांत हो जा तू तो है ही
एक एक साँस देख.."

अचरज से कौतुहल लिए फिर पूछा
कैसे प्रेम करूँ मै !
उसने कहा-प्रेम में मेरी गहराई देख
और मेरी उंचाईं देख

कुलबुलाहट से फिर पूछा शांत साँसे-
प्रेम गहराई ऊंचाई !
उसने कहा - आँखे अपनी बंद कर ले
अंतरयात्रा मात्र एक

जिज्ञासा कहाँ शांत होती इस पल में
पूछा,'करके दिखा दो'
उसने कहा,'नेत्र मूंदते ही प्रलय होगी
ये योग कुछ अलग है'

लोक अँधेरा होगा मेरी अंतरयात्रा में
समस्त व्योम सोयेगा
मेरे अंतर्योग पूर्व सुझाव जागने का
मात्र अवसर जान ले

रक्तकण बन दौड़ता तेरी शिराओं में
मेरी शिराओं में दौड़ना होगा
यूँ श्वांस बन घुल चुका तेरे जीवन में
मेरी श्वांसो में घुलना होगा

योग जागरण से बस इतना जान ले
जीना मरना ही सीखेगा
जागरण-युक्त-जन्म जग में होते ही
स्वयंसिद्ध कहलायेगा

लौकिकसुप्ति अंतर्गामी अंतरआयामी
मौन तेरा वाणीयुक्त होगा
प्रेम,शांति,श्वांस,गहराई,ऊंचाई संबंध
का ज्ञान उसीपल में होगा

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