Monday, 9 March 2015

रंग


हरसू यूँ नहीं फैले रंग ये 
अन्तस्तम का फैलाव है  
चन्द्र-किरण से शुभ्र हुए  
चाँदनी से सब  नहाये है  
आस्मां पे धनुष निखरा 
मेरे ही है रंग जो छाये है ....... 
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घन बन आस्मां पे छाये 
जलकण रंग में लिपटे है 
सूर्य किरणों को समेटे है   
मेरे ही है रंग जो छाये है
शैलपुत्री से आशीष लेके 
फूलों को ये नहलाते हुए 
नदियों को सहलाते  हुए 
क्षीरकन्या से जा मिले है ............
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प्रेम, संगीत, नृत्य,कला 
तरंग  बन बहते  डोलते 
मुस्कुराहटों में ही  नही 
आंसुओं में भी ये घुले है 
मेरे ही है रंग जो छाये है
जीवन बन के उभरे जो 
भावना में  बस खिले है ..............
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जबभी दिखे ये ही दिखे 
जहाँ भी गए ये ही मिले 
सम्पूर्णता समग्रता  से 
रंगीं हृदयांश  समाये है 
मेरे ही है रंग जो छाये है 
ये इसपल की बात नहीं 
सदियों में फैले आईने है .............
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Om Pranam

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