Thursday, 26 February 2015

युगोंयुगो खेलती पहेली का हल पूर्ण हुआ


आधा दिखता आधा जा छुपता 
आंख मिचौनी का खेल खेलता 
पकड़ा गया, कोने में जो छिपा
कोर में छिप थोड़ा सा झाँकता  
बालक सा खेलता पकड़ा गया 

आधा उलझा आधा वो सुलझा 
आधा था अँधेरा आधा उजाला 
आधा लिपटा आधा था छिटका 
मेरे  जीवन  घेरे को पूर्ण करता 
आधा  प्रकट था आधा अप्रकट 

अप्रकट हो तू ही प्रारब्ध बनता 
प्रकट मेरा कर्म हो प्रेरित करता 
हर कदम को संभाल के रखाता   
मेरे हरपल का तू हिसाब रखता 
आधा  दीखता तू  आधा छुपता 

मेरे  आधे  प्रकट हुए हिस्से  का  
आधा अप्रकट  हिस्सा  तू  ही है  
अप्रकट आधा हिस्सा नक्षत्र हो 
दिव्य रूप से आंदोलित  करता 
आधा प्रकट हो मुझमे जन्म से 
मृत्युतक मुझमेआंदोलितहोता 
तू  ही तो है  मेरे आधे टुकड़े का 
दूसरा  बिछड़ा  वो आधा टुकड़ा
जिससे  जुड़  के घेरा  होता पूरा  









रहस्यमय खजाने की कुंजी सा 
अर्धप्रदर्शित शिवलिंग रूप बन 
निम्न+उर्ध्व खंड के ठीक मध्य
ओजस्वी छिप स्व परिचय देता 
अद्भुत खेल अद्भुत दर्शन तेरा 

मैं जब बढ़ती, तू जर्रा हो जाता 
तू बढ़ता तो मैं जर्रा  बन जाती 
आज मध्यान्ह में एकसाथ हुए  
तूभी जर्रा मैं भी जर्रा,युगों युगो 
खेलती पहेली का हल पूर्ण हुआ 

आस की बेपनाह मोहब्बत नसीब हो ......




उन  ख्वाहिशों को 
आस  की बेपनाह 
मोहब्बत नसीब हो ......

जिन्दा  रखती  हैं 
कुछ कुछ,सब कुछ 
बिखर जाने के बाद

ठहर ! तू रुक जा वहीं



बंद कर इस छोर से उस छोर तक दौड़ चांदी के तार पे
फैले अनंत आस्था के आयामों में ठहर तू रुक जा वहीं

न ढूंढ भुरभुरी रेत में वो आगे बढ़ गए क़दमों के निशाँ
मुसाफिर जी भरके,आज जहाँ जीवन जरा मिले जी ले  

टप से पड़े चहरे की तपन पे जो पानी की बूँद छन्न से 
उस भाप हुई को,खिले हुए फूलों की नमी में तलाश ले

तपिश में रहते पक्षी कंठ सींचती बूँद को दुआ मान ले 
किसी की आख्नो से, टपकते प्रेम के आँसूं में तू देख ले

उसकी उंचाईयों और गहराईयों को न माप ऐ दिलनादाँ  
मासूम कोशिशों में, चुटकी भर राख भी न हाथ आएगी

Om

शांत रहो, शोर नहीं , ध्यान दो ..



whatever you have strength  may go long , 
the path is limitless my dear for you  ... 

जितनी भी शक्ति है  तुम दूर जा सकते है , प्रिय तुम्हारे लिए 
ये रास्ता  सीमा विहीन है 

however  you  may ride  up  or  may ride down , 
the vast is unlimited my dear all is for you …

जितने ऊपर  और नीचे  तुम यात्रा करना चाहो, करो 
अनंत  असीमित  आकाश तुम्हारे लिए है 

all  story the mind  is for mind and by mind , 
mind it ! mind is  best recover of self .. 

सारी गाथा  मस्तिष्क  की  मस्तिष्क के द्वारा  मस्तिष्क के लिए 
ध्यान रखो ! मस्तिष्क ही स्वयं का उपचारकर्ता है 

Healer pusher wounder and best illusive is mind
to serves Illustrations  under techniques …

उपचारक  धकेलने वाला  घाव देने वाला  काल्पनिक दृश्य 
उपस्थित  करता  है काल्पनिक विधियों के आधार पे 

just keep in mind one day  mind get cool and runs 
get down ..The soul find ultimate rest …

ध्यान रखना बुद्धि शांत होगी  दौड़  भी निश्चित  कम होगी 
आत्मा को   अभूत पूर्व  आराम मिलेगा 

neither in mind's run nor in heart's flow,time  will be
neither sun will rises  nor sunset will be there …

न तो मैं दिमागी दौड़ में  न ही भावनात्मक बहाव में , समयरूप 
जब न सूर्योदय  का समय होगा  न ही सूर्यास्त का 

nether it will goes to heaven nor it will be moves 
towards hell , the time will must comes .... 

न ही  ये  स्वर्ग को ले जायेगा ,  न ये रास्ता  नरक को मुड़ेगा  
ऐसा समय आएगा एक दिन 

seed  get ready  to culture and able to produced fruit 
the time fruit get ripe , tree will do release.. 

बीज खेती के लिए  तैयार  होके  फल के उत्पादन को योग्य  होगा 
वो समय फल पक के तैयार  होगा  , वृक्ष  छोड़ देगा 

to take you towards his kingdom, itself thy comes ..
till than  keep quite , don't loud , pay attention 

अपने साम्राज्य में तुमको ले जाने को  वो ईश्वर स्वयं आएगा 
तब तक के लिए शांत रहो, शोर  नहीं , ध्यान दो ..

Monday, 23 February 2015

बुध्ही-भाव के रंगे सियार


सिमित थी द्वैत में  परद्वंद्विता मेरी परालोचना तक 
अद्वैत में असीमित  हुई,मुझसे मेरी ही अंतरद्वंद्वितां  

स्व ही स्वयं  निर्माण करती खुद से खुद  सामना करती 
स्वयं निशाना बनती चुनौती लेतीदेती, मैं थी मेरे सामने





सात रंगों में रंगे
सबके भीतर बैठे 
इंद्रधनुषी सियार 
शेर की खाल ओढ़े
स्वतंत्र  विचरते
माटी की बाम्बी  में
और शेर थे अचंभित
अलग थलग डरे खड़े 
सशंकित किन्तु मौन !
बुध्ही-भाव के रंगे सियारों 
को ढूंढने के खेल  से दूर-
मध्य में खड़े हो, 
मस्तिष्क -दिल की रफ़्तार से परे हट ,
तनिक चित्त में स्थिर हो मद्धम शांत लौ जगा लेना ....

भीड़ में जाओ तो शोर से

सन्नाटे को अलग कर लेना .....
जंगलों में जाओ तो  सन्नाटो से
झींगुरों की गुनगुनाहट अलग कर लेना.....
रौशनी से  अंधेरों को अलग कर देखना
अंधेरो में जुगनुओं से रौशन लकीरों  से समझ लेना.....

गीत से बोलो को अलग कर देखना

साजों से उनकी धुन को हटा कर सुनना  
संगीत  से लय को  हटा थाप लेना 
चित्र से  रंगो को अलग कर रंग तरंग लेना 
किताबों से स्याही को मिटा श्वेतपन्नो को पढ़ लेना.....

विरोध के कणो को  मध्यम छिद्र युक्त

छन्नी से आहिस्ता से छान  सको  तो
स्वक्छ मध्य बिंदु भी मिल जायेगा
अत्तियों के  विरोध में तैनात खड़े सिपाही से
आभासो  भावनाओं  तर्कों को छान अलग कर  लेना.....

दौड़ का दूसरा नाम मिला वो जिंदगी है

बुद्धि ने बनाये  दो खम्बे का महल
खींचतान के एक छोर बाँध लटका दिया  ज्ञान पे
दूसरा  छोर अटका दिया भाव खूंटी पे
दिल दिमाग के बीच करे खुद ता ता  थईया
न ये, न वो छोर काम आया
बौद्धिक प्रपंच को बिन-चुन जीवनथाल से हटा लेना.....

दुनिया के मायावी खिलौने ,

सबको खिलाये , खुद भी खेले
रुपहले तार पे  भागता जाए
देह थके , पर मन  न टूटे 
करतब भर के  गुलाटी लगाये
आँखों से  भर भर नदी बहाये
युद्ध के पाठ यही पढ़ाये
नृत्य संगीत पे यही नाच नचाये
क्या क्या न इसने  खेल खिलाये
बुद्धि और भाव  की दौड़ को भी जरा समझ लेना.....

माटी की बाम्बी में रहते

इक्छा कामना के फूलते दल कमल
समुद्री  लहरों  सी शोर करती उठती गिरती
भाव बुद्धि के बलिष्ठ खम्भो से टकराती
सीमाविहीन वासनाये और -
थपेड़े न सह पाने के हालातों  में
बिना नीव का  महल  धड़ाम गिरा ,
धूलधूसरित माटी का अस्तित्व
बिखरा-टुटा और खूबसूरत जर्रा बन गया
बुद्धि भाव का था ताज + महल
आह !   यही तो खड़ा है  सत्य मध्य बिंदु पे
पूर्वभासी के आतुर प्रेमालिंगन को स्वीकार  कर लेना.....

सत्य खड़ा बिलकुल था उलट

परछाई सा साथ था वो हर पल !
लगता है  ये भी दृष्टि दोष ही है
सत्य परछाई है या के असत्य
असत्य जो चाल  बदलता गुलाटी खाता
जरा सोचो  !  भाव अपने , तर्क अपने  ,
सत्य असत्य के अंतर्द्वंद्व में कभी अटके
परिवर्तत -अपरिवर्तत को  नेति-नेति से अलग कर लेना...

सूफी हँसता !

*
नन्हा फूल खिल महका सूखा गिर पड़ा 
होता खामोश अंधेरो में 
लहर उठती जोर से किनारे पे खो जाती 
सूफी हँसता," क्यूँ सहमे-सहमे लोग "

*
जिस्म तो जिस्म सभीके राखतत्व है एक 
ताकतवर या कमजोर 
कत्लेआम करनेवाले मरनेवाले दोनों गए 
मस्ता हँसता," कित्ते हैं दीवाने लोग "

*
सूरज-चाँद-सितारे आते जाते बारी-बारी
दिनरात का चलता चक्का 
अस्तित्व बनता,जीवन मिटता देखदेख
सूफी हँसता," नाहक हैं परेशां लोग "

*
उसका अट्टहास आज भी गूंज रहा है 
खामोश वादियों में 
क्यों हँसता था वो ,आज भी सोच में है 
जोगी हँसता," कैसे ये दिमागी लोग "

कयास अच्छा है !




किनारे पे खड़े होके 
ख़ुदा की ख़ुदाई का अंदाजा न दीजिये !
.
.
नाव उतरे तो गहरा ,
वर्ना समंदर भी जमीन का ही टुकड़ा है !
.
.
चुल्लू भर के उसने 
समंदर को उलीचने की शिरकत की है !
.
.
गहराइयों से मोती 
निकालने का उसका कयास अच्छा है !

Friday, 20 February 2015

भाव-यज्ञ


ॐ 

के इस 

भाव-यज्ञ में 

बैठ दो पल मौन 

मंथर-गति-श्वांस 

भावो की अग्नि तले 

चक्री वातायन खुलते है 

ध्यान का हवन जलता है 

आहुतियां पड़ती एक-एक 

रिसता गर्म-मोम गलता है 

पिघल शमा तू, वो कहता है  

साफ़  होता धुलता चलता है

अंदर कुछ तो जो पिघलता है 

पूछते वे, ये पिघलना कैसा !

होता क्या तपना तपन का !

कुछ संवरना होता है कुछ 

ज्यादा  निखारना होता है 

पिघलना बड़ी बात नहीं 

नन्हे पलों का  हुजूम है 

जतन से बड़ी लगन से 

बस कुछ संजोना है 

कुछ सिमटना है 

कुछ धुआं होना 

कुछ फ़ना 

होना है 

ॐ 

Thursday, 19 February 2015

सफर





ढोल   ताशे  संग 
सफर शुरू  किया 
उत्साही मद भरा 
मस्त मदहोश है 
अभी तो जीने दो 
अंत  की  न पूछो 
कहाँ कब कैसे हो 
किस  हाल में हो !

पते का पता न हो 
पते को पता न हो 
अच्छा  है  मासूम 
अँधेरा   रहने   दो 
आँखे  ये  झुकी  है 
पर्दा    रहबर   का 
पड़ा  ही  रहने  दो 
जो  जैसा  है वैसा 
ही  उसे  रहने  दो 

परदे    के  भीतर 
हंसना   गाना   है 
नाचना  है    रोना  
गीत है  संगीत  है 
ह्रदय मस्तिष्क है 
कुछ चित्र  रंगीन 
तो  कुछ  रंगो के 
लिए कतार में है 
कराहना  भी    है 
सिसकना  भी  है

घाव   भाव  प्रेम 
उपचार  व्यापार 
बहती तरंगो को 
आघात औ फिर  
मरहम  मिलेगा 
बीमारी   है   तो 
इलाज   मिलेगा 
कुछ न भी मिले 
तो उसका करम 

यूँ ही  गुनगुनाते 
पहुंचे  मुकाम  पे   
मौसम लो आया 
फिर  सजने  का 
ताशे   बाजे   का
कट  गया  सफर 
लो बातों बातों में 

ॐ  की  सत्ता  को 
मेरा सादरप्रणाम 

Joy-Blast




O'  ultimate  joyous

got amazing garden 
on undelivered land 

caught white & pink
pearl in deep Ocean 

light of darkest area 
turns all light inside 

find; beautiful mirror 
when light turned-in 

fountained  joy-blast

rainbow of vast

and every color says something,
color-shade dance on that bhava


feeling green dominance
stand firm more on earth
(showering rain on Earth)

feeling red dominance
still life get celebrate
( showering happiness )

feeling blue dominance
your heart is lost in sky
(showering blessings )

feeling yellow dominance 
stitched with love of thee
(showering ample blessings)

feeling orange dominance 
shows living of nonliving
( showering infinite love )

feeling white dominance
mind get set in purity
( showering love n peace )

feeling pink dominance
filled in love with thee
(showering jollity n light )

feeling gray dominance
confusion of what n why !
( shower of compassion )

rest dominance of sheds 
combos of mix n match
( all about life )

beautiful rainbow appears 
upon vast land of tiny heart
(love , light  n peace Om )

all colors n sheds appears 
and heart is the birth place ... 
( Om Om Om )

Om pranam

Monday, 16 February 2015

तु अहसास है मेरा


बार बार दौड़ लगाता तो हूँ, बंधा हुआ अनजान परिधि पे -
फिर थम जाता हूँ लौट के अपने ही बिंदु पे सुस्ता लेता हूँ

शिथिल होचुकी वो जिस्मानि ताकतें कभी जिन्पे नाज था 
शक्ल येके एकएक सांस केलिए तेरा कर्जदार होचला हूँ मैं....

सुना है छुइ-मुई सा नहीं मिलता छूने से कभीभी किसी को 
अहसास है मेरा , और साथ मेरे तू हरवख्त चलता जरूर है

जानता हूँ नहीं मिल सकूंगा खो जाऊँगा अंधेरों में एक दिन 
तुझे पाने के मधुर-प्रणय अहसास से ही तृप्त हो चला हूँ मैं.....

Om Pranam

I'm alive

( One day of Life )


And 

" i " am life 
Innocent and  tender 
Full of warmth and hope 
Strong wings with delicate power..

i am here to more tell you 
i am here  to more serve you 
i am here for more than  picture 
i am alive today Indeed; i am alive .. 


सुन्दर माला का उलझाव



हमसब झुण्ड में ज्यूँ बैठे 
बहु भाषा भाषी  मन्थनी
समग्रता साथ पूर्णता  से 
ऐसा  झुण्ड  अंदर भी था 
जागृत  बिल्कुल वैसा ही 

माणि से संदेह और उत्तर 
रंग रंगी मोती के दाने थे 
धागे  का  एक  छोर मेरा 
दूजा  छोर अनंत  का था 
एक  धागा  संशय   पोरा
दूजा  उत्तर का  है  पोरना    
सुचारुता  से कहाँ  पूरता 
आगे  पीछे होता रहता है 

कभी  संशय  पड़ते जाते 
तो  कभी  उत्तर  ही पुरते 
रंगीली  माला  तेरी  मेरी 
अन्तर-झुंड मोती उछल 
बाह्य-झुण्ड  जा  गिरता  
माला  भासती एकत्व में 
तोकभी झुंडों में उलझती 
उनसी अनगिनत  माला 
माला  में  असंख्य  मोती  

माला  पुरती  दाने बंधते
असीमित सिमित  होता 
माला विस्तार सिमटता  
सुन्दरमाला बनतीजाती

मंडल के कमंडल"तुम्ही हो"




सत्य, प्रेम, सम्बन्ध, हानि और लाभ 
कर्म,भाग्य, सृजन संग विसृजन भी 

विश्वासों के भी घेरे और फेरे देखे है 

धरती साथ हमसंगी संग में घूम रहे 

सुनो ! यात्री ठहरे किस चक्र में हो !

घूमते मंडल के कमंडल "तुम्ही हो"


प्रतीकार्थ :-  * सत्य -  सच्  जानने  के लिए भटकते  जीव 
* प्रेम - वास्तविक  प्रेम की परिभाषा खोजता 
* सम्बन्ध - सांसारिक  अथवा परा  सम्बन्धी को श्रृंखला 
* हानि - सांसारिक  अथवा आध्यात्मिक हानि 
* लाभ - धन  सम्पदा  पद प्रतिष्ठा रूप  सौष्ठव आदि दिव्य अथवा सांसारिक लाभ 
* कर्म - कर्म बंधन सांसारिक अथवा विश्वास जनित  जन्मो से बंधे 
* भाग्य - पिछला ,  इस जन्म का अथवा  आगे का 
* सृजन - खोज नित नयी  , नित नए प्रयोग  खोज के 
* विसर्जन - समस्त भाव कर्मो का तर्पण करना 
* संग - साथ साथ समस्त उपरलिखित भाव भाव चलते हुए 
* विश्वास - अति विस्तृत  और अति सूक्ष्म , कथन से परे  अनुभव योग्य 
* घूमता  मंडल -  ब्रह्माण्ड , समस्त तारागण , सौरमंडल  अथवा  अपने ही अंदर वैसे ही चक्कर लगा रहे  तारागण के प्रतिबिम्ब  डीएनए 
* कमंडल - साधु का  धातु पात्र   जिसमे पवित्र जल भरा हो , अथवा  अद्वैत अर्थ में   ये शरीर कमंडल है जिसमे दिव्य जल भरा है 

इतना  पढ़ने के बाद  ध्यान में अनुभव कीजियेगा " जिसको ढ़ूँढ़ते थे  वो यही है इस पल में मेरी  अपनी  साँसों में गुथा हुआ है " अंतिम पायदान पे खड़े  इस ध्यान  भाव  के साथ कर्ता भी  हो  स्वाहा ! 

( मित्रों ! कविताये  सुगंध समान होती है , जिनको संवेदनशील के लिए सूंघना  आसान होता है जिनका व्याख्यान अति विस्तृत अक्सर असंभव , आधा कहा और आधा अनकहा )
Om Pranam

नन्हे से बिंदु में हो तुम



* दिल दिमाग के बीच जो ठहरा चुका है !
तर्क-भाव की  ऊँची ऊँची लहर बीच रुके  
आभास में हो तुम

* चिल्मन का पर्दा बुद्धि-भाव की दूरी नहीं  
परदे के इधर भी तुम ही तो रहते  हो और 
उधर भी हो तुम

* दिल और दिमाग की ग़लतफ़हमी है सब 
ढूंढे से दिल में न मिले, ना ही दिमाग में 
रुके हो तुम

* सतर्क रहो बहाव के बीच में धारा तरंग है
नाजुक डोर के इस छोर में बसते, न उस 
छोर में हो तुम

* खुली आँख साकार है बंद की तो निराकार 
ज्ञान और अज्ञान मध्य में ठहरे हुए नन्हे से 
बिंदु में हो तुम

* किस  नाम से पुकारूँ ! क्या शब्द दूँ तुमको  
रेशम के एक नन्हे धागे के तार-तार हुए तार 
के तार में बुने हो तुम 

* क्या अभी भी मेरा अहसास प्यासा ! जबकि 
हो ज्ञात तो अज्ञात भी तुम्ही,कणऊर्जा संयुक्त 
व्योम-ऊर्जा में भी तुम ........ 

*  सौर-मंडल मध्य, धरती के ह्रदय में जीवित
प्रकट अद्भुत जीव् अस्तित्व किन्तु  सिमित 
जीव मध्य में भी तुम ......

* व्योम में मध्यस्थान,मध्यमजीवन, मध्यमश्वांस 
मध्यम में ही आध्यात्मिक अन्तस्तम का संतुलन 
मध्यममार्ग का बुद्धज्ञान तुम .......


_()_ Shiv-om pranam

 ॐ नमः  शिवाय 

Wednesday, 11 February 2015

अब बोल भी दो



गहन   गुफाओं  में 
कठोर  साधना  से 
शरीर  साध्य  कर  
तुझ से  जुड़ पाये, 
या 
घर   के   अँधेरे   में 
कम्परहित लौ जला 
तुझ  से  जुड़ अपनी 
तरंग नाव खे लेते है  
तू  तो सबका  है ...

गर्दन तराश के जो 
रक्त सने टुकड़ों पे
झूमते   उत्सव की 
खुशिया  सजाते है 
लोढ़ा  हो  या नाव 
खीरा  हो  या  धार 
तू  तो सबका है ....

न भर्मा मासूम को  
बने  बनाये ख़ुदा से 
बने  बनाये  मसीहा
तोड़ स्वनिर्मितजाल 
अब  बोल भी दो के
 वो -"सच" सबका है ...


वो मसीहा




वो मसीहा कुछ तो कह गया 

चुपके  से  सन्नाटे में मुझसे


जिसे  अधखुली  किताब का


लोग  अधखुला सच कहते है

मुझे न उलझा...!



सही और  गलत की 
गलतफहमियों   में 
मुझे     न    उलझा...! 
नेस्तनाबूत     हुए  
ईमान            मेरे 
खुदा तो  सभी का है 
जिनके  सर  कलम
होते  है  ,  या  के 
जिनके   हाथों   में 
खंजर  थमे  होते है.! 
सच  झूठ  अभी भी 
दो  है   या   मैं अभी 
पूरा नशे में नहीं  या 
पैमाना अभी झूठा है

मुसाफिर



ओ  . . .  मुसाफिर! 
पुराने  खंडहरों  से   
उजड़ी बस्तियों से ,  
बिखरे   पन्नो    से
या गुजरे समय  से , 
गर्त  के  कंकालों से  
सूख   चले  वृक्ष  से 
गंध दे  चुके फूल से 
उम्र  की  झुर्रियों से 
काव्य /  शास्त्रो  से 
पुरातन   चित्र   की 
धूमिल   रेखाओं से 
नृत्य   की   मोहक 
खोई   सी  विधा से 
क्या  ला  सकते हो 
कुछ    जिवंत    हो 
अभी   मरा   न  हो 
धीरे  धीर  से  सही
सांस  लेता  तो  हो 
या  के  हर बार सा 
बेजान    उठा   ला
थैला   काँधे   डाल 
अपने  भार से दबे 
वजन  से कराहोगे

संतगीत



उसका सब कुछ तो खुला नहीं है यद्यपि कुछ छिपा नहीं है 
जाने अनजाने उसके साम्राज्य में आस्था को प्रवेश मिला है

प्रकृति की लीला याके परम निर्मित गति झेलना अवहेलना
अथवा भोगना जन्मो या कर्मों के बंधन में बंधे झूलतेडोलते

कुछ निश्चित, कुछ अनिश्चित , धुप छाँव तले विश्राम पाएं 
कुछ सुगंध, कुछ नवीन जन्म, कुछ और खिले ये कमलदल

ध्यान लगा पूर्ण समर्पण संग, स्वीकृति का गीत गायें संतो !
क्यूंकि बुद्धिगत विश्लेषण से जीवनरहस्य नहीं खुला करते

अन्तस्तम में दिया जला


सुना था जीवन दायी हवाएं एक सी बहती है आसमान में
घेरो फेरों का अनंतजाल,जाल में उलझा ऊँचा उड़ता पाखी
गोल गोल घेरों फेरो का संसार, इस पार भी उस पार भी है

उड़ के देख लिया , उनके भी अपने नरम गरम स्तर होते है
उनके भी अपने थपेड़े होते है उनके भी अपने उछाल होते है
जल थल आकाश लहरें सतहों में इस पार भी उस पार भी है

उड़के डूब तैर के सिमटा दुबक बैठाअन्तस्तम में दिया जला
अंधेरा धूलधूसरित था घर का कोना,दिया जला उजाला हुआ
देखा डूब असीम गहराइयों के प्रदेश इसपार भी उसपार भी है

द्वित्व चक्र


yin-yang 
or 
masculine  feminine 
or 
Ardhnarishwara 

मैं वो तुम्हारा न कह सकता हूँ, न तुम मेरा सुन सकते हो 
गीत गा सकता हूँ तुम्हारा , न तुम मेरा गुनगुना सकते हो 

प्रयास अथक तुम्हारे हो सकते है,प्रयास मेरे भी हो सकते है 
कुछ परदे में तुम रह सकते हो,कुछ आड़ हमारी हो सकती है 

इतना सच है ! परिभाषाएं सच की बदलती रूपों में ढलती है 
संभव से होता जाता असंभव, असंभव से होता जाता संभव  

लेन देन के इस  काण्ड चक्र में यिन-यांग से उलझे हमतुम  
अपने तल से देता मैं जो भी,तुम भीअपने तल पे ले लेते हो 

गोल गोल घूमते ; समय के इस चक्र में रहते हम तुम दोनों 
अपनी गतिमति में गोता खाते ,अपनी मतिगति में बसते है

The Archery Eternal





Known as vaitarni 
In the river of vast
to survive , to exist
manifest existence 
swims in  own way
Prarabdh works or
destiny to find path

target to center dot
how difficult for tee
most wrong shoots
due to shakes  bow 
any  analytical point
lays-on  shaky  wrist

" I "  mean it what  is 
mindful      descriptions
drills     on  archer's  wrist 
neither    before    nor   after
find veins path and blood is flow 
flowing  cells  are archer's existence 
and  hurdle  resides   on   twisted   wrist

a little pinch



a  little  pinch  may  able  to  awake 
a  little pinch  able  to  ringer alerts 
a  little  pinch  may  able  open gate
a  little   pinch  may  embrace  wise
surrender  accept   this  little  pinch 
on   contradiction  shape  of   pinch 
smaller  particle  to  bigger universe 
and  you  sits on lap of  black  Shiva 
each little pinch little tap of beloved

तू सिमितअसीमित मर्यादितअमर्यादित

haven't seen such a beautiful expressions in pic .. is complete in express about Divinity at the end . even Om is in middle as i had thought .. same lord replies . i am above of all expression possible .
बंद नजरों से दीदार था खुली तो गुम 
करीबियों की चाहत ने तुझे दूर किया

बहुत कुछ कहने की धुन, जुनु ही था
चाहत सुरताल की, शब्द में ढले कैसे  

निकलते ही हवा में घुल गये वे शब्द
जिनको हवा से, बेवजह चुरा लाये थे

हसरत से कदम दर कदम चलते गए
अश्क आरजू भरे छलकते सूखते गए

न कोई  रंग न रूप तेरा  न कोई स्वाद
न स्पर्श  तेरा, क्यूंकि  फिर भी तू रचा 

सुगंध रूप रंग स्वाद स्पर्श  में स्थित 
पद्मनाभ से होता  ओंकार से विचरता 

विलीन होता उठता धुंआ सा शुन्य में 
सिमितअसीमित मर्यादितअमर्यादित 

Om Pranam