जीवन में उतरते जीवन मृत्युसम
मृत्यु उतरती उनमें नवजीवन सी
कहीं मृत्यु दे दोहरी मृत्यु आभास
तो मृत् सम में जीवन का उल्लास
स्वप्न में विचरते स्वप्न ! देखे है..
छोटे नन्हे तिनके आस्मां पे उड़ते
भांति भांति रंग रोगन साथ लाते
कहीं कीट से लिथड़ रेंगते ! देखे है..
चाहत सिर्फ चाह है मात्र निर्जीव
फल दूर इक्षायें अभी है बीज रूप
कांटे की नोंक औ रंग चित्रकार के
कैनवस लकीरो में रंग भरते जाते
है, एक ही माता माया की संतान
इक स्वप्नदृष्टि दूजा स्वप्नवृष्टि
स्वप्न में विचरते स्वप्न स्वागत
मानी का मान ज्ञानी का ज्ञान है
अहंकारी का अहं बन जाते ये ही
और प्रेमी में धड़कते बन धड़कन
और स्वयं से पार भी कराते जाते
स्वप्न कैसे कैसे स्वप्न दिखाते
अंदर इनके स्वप्न जीवन जीते
जानना है तो बाहर इन से आ के
मीठे तिक्त स्वप्न काटने होंगे
ज्यूँ ही बृहत्स्वपन के भी पार हुए
माया रचित निद्रा से पार हो गये
मानव जनित दृश्य पीड़ा से गड़ते
भाव लुभावी त्रास,सुख सुनहले देते
दिखते घटते प्रकर्ति के छलबलढंग
उस दिन जान सभी राजा भिखारी
सभी योद्धा और सब धर्माधिकारी
संत फ़क़ीर भी , रेंगते कीट हो गये
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