Sunday, 7 June 2015

दरगाह कैसा है


बस इक सुर्खरू  सा अहसास चाहिए 
हर दीवाने को  उसकी  आब चाहिए 
पता न  ठिकाना है  मेरे  दिलबर का 
कहु क्या पूछे कोई कहाँ गुम हुए हो !

क्या कहु !  क्या कहु मैं नूर कैसा है 
हजारो सूरज कम  है,  बयां के लिए 
अब मेरे इश्क़  तू ही  मेहरबानी कर 
बेनकाब कर दे खुद को ! मेरे वास्ते 

खुद ही समझ लीजे सवाल न कीजे 
अब क्या कहु की आफताब  कैसा है 
उनकी खामोश  निगाहों में रहूँ  बस 
सवालात  न  कीजे  दरगाह कैसा  है 



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