बस इक सुर्खरू सा अहसास चाहिए
हर दीवाने को उसकी आब चाहिए
पता न ठिकाना है मेरे दिलबर का
कहु क्या पूछे कोई कहाँ गुम हुए हो !
क्या कहु ! क्या कहु मैं नूर कैसा है
हजारो सूरज कम है, बयां के लिए
अब मेरे इश्क़ तू ही मेहरबानी कर
बेनकाब कर दे खुद को ! मेरे वास्ते
खुद ही समझ लीजे सवाल न कीजे
अब क्या कहु की आफताब कैसा है
उनकी खामोश निगाहों में रहूँ बस
सवालात न कीजे दरगाह कैसा है
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