Sunday 14 June 2015

समग्र सत्य


क्या  छोड़ोगे ! क्या पाओगे 
कहाँ शुरू कहाँ  ख़त्म करोगे
सारी कायनात  के वही बोल 
जो तुमसे निरंतर आ  रही है 
उसकी गति में तुम्हारी गति 
उसकी शैली में जीवन कथा...

उसके ठहराव  में ठहराव तेरा 
जैसा प्रकाश बाहर  दिख  रहा 
छन छन  ओट से निकल रहा 
जो सूरज में सबको दिख  रहा 
नन्हे  वातायन  से  झांक रहा  
दर्पण में प्रतिबिम्ब हो चमका
वो क्या विधी  जो अपनाओगे 
कौन सी यहाँ जो व्यर्थ पाओगे !
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किस वाणी का उपहास करोगे 
किसके कथन पे माथा टेकोगे 
क़िस जगह को तीरथ  पाओगे 
किस पत्थर  की श्रद्धा  करके 
कौन सा पुष्प उसपे  चढाओगे 
किस  तारे में  ढूंढ उसे पाओगे 
कहाँ कहाँ अभी और भटकोगे ....
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सीखने चले तो, हर तकनीक 
गाने चले तो , हर  गीत में वो 
योग में  आदियोगी  बन बैठा 
प्रेम में छिप के प्रेमी बन बैठा 
ज्ञान में ज्ञानी अज्ञान में मूर्ख 
शास्त्रो में शास्त्री, रंगो में रंग ..
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क्या  छोड़ोगे ! क्या  पाओगे 
कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म  करोगे
सारी कायनात के  वही बोल 
जो तुमसे निरंतर आ  रही है
उसकी गति में तुम्हारी गति 
उसकी  शैली में जीवन कथा...
.
धागे  पकड़  छोड़ते  जाओगे 
बुनावट पाओगे दुर्लभदुष्कर 
व्यर्थ से  बचते  अर्थ को लेते 
एक एक कदम संभल चलते 
योगी का संग्रह योग थैले  में 
रुकना  नहीं किसी  पड़ाव  पे 
गृहण नतमस्तक विदा  सूत्र 
माया की कठपुतली सी  सब 
रे सिद्ध!  महायोगी तू है ही  ....
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क्या  छोड़ोगे ! क्या  पाओगे 
कहाँ शुरू  कहाँ ख़त्म करोगे
सारी कायनात  के वही बोल 
जो तुमसे  निरंतर आ रही है
उसकी गति में तुम्हारी गति 
उसकी शैली में जीवन कथा...
.
Om pranam

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