खुद से ही शाम बात चली, यूँ बेसाख्ता कह बैठे
फितरत रूखी सी और दिल की जमी भीगी जरा
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माना ! बड़ी बड़ी गुत्थियां सुलझाने में माहिर हो
दम भर पास आओ बैठ मुस्करा तो लो जराजरा
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देखो हर एक सांस लो गहरी आहिस्ता आहिस्ता
समंदर तो जानते ही हो लहरो को भी जानो जरा
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यूँ तो ख़ुदा से कम नहीं हैसियत हरेक शख्स की
पर जरा इंसान बन के जी लो ये जिंदगी को जरा
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