Friday, 19 June 2015

बरसी


फिर वो ही ढाक के तीन पात

इंसान तेरी यादास्त कितनी कमजोर,
इक्छायें और लालसाएं कितनी प्रबल
कितनी क्षणिक, लो मेला सजने लगा 
फिर  दूकानदार दुकान लगाने लगे है 
यही वो जगह जहाँ खरीदार कतार में 
पंक्तिबद्ध हो हँसते-हँसते लुट जाते है ... 
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हवन भजन भोजन साथ फिर वो  ही
डर  का  नर्तन फिर वो  ही  मनचाही
मुराद  के  लिए  हाथ जोड़े दयनीय 
आँखें मींचे भिक्षा मांगते अमीर गरीब
भिक्षुक और धर्माधिकारी एक  हो जाते है ....
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यही  नियम है शाश्वत यही बहाव है
यही  भाव है श्रद्धा और  भक्ति का 
कहते सुना है तुम्हारे दरबार में आये  
बह  गए वो भी भाग्यशाली, जो बचे-
किसी तरह,वे महा भाग्यशाली हो जाते है ....
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अजीब राग.....अजीब सुर भाग्य का 
बस भाग्य और उस भाग्य देखने की  
दृष्टि अलग अलग है, जो पहुंचे धाम  
वो  भी भाग्यशाली, किसी कारन जो
न पहुँच सके अचानक भाग्यशाली हो जाते है .. 
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प्रकर्ति जो करती है नियमतः करती है 
मनस श्रद्धा देखिये कैसे रंग धरती है 
कहते है जिस पत्थर से मंदिर बचा था  ,  
लोग  उसे   अब   नंदी बाबा  कहते   है  !
कुछ  वही  खड़े  हो मन्त्र  पढ़ते  है  तो 
कुछ झुक रूपये की भाव वर्षा करते  है  
तब जाके महाकाल  भक्त-दर्शन  कर पाते है ...
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प्रणाम आपको लीलाधर शिव शम्भो.... !
मनुष्य में क्षमता है प्रभु का हर जतन 
हर उपाय और वाणी मनुष्य की लालसा
के नीचे दब कराहती है प्रकृति की लीला 
माया की त्रिगुनात्मक बानी तब सुन पाते है...

इसके साथ ही  फिर वो ही दोहराते है ...........!!

इंसान तेरी यादास्त कितनी कमजोर
इक्छायें और लालसाएं कितनी प्रबल 
कितनी क्षणिक, लो मेला सजने लगा 
फिर  दूकानदार दुकान लगाने लगे है 
यही वो जगह जहाँ खरीदार कतार में 
पंक्तिबद्ध हो हँसते-हँसते लुट जाते है ... 

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