द्वित्व संसार में अद्वैत खोजने चले वो
नामुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
यूँ ज्यूँ शराबी डूब नशे में योग लिप्त हो
नित नए प्रयोग करे प्रयोगशाला बने है वो
रात भर सोये खर्राटें भर भर के, भोर पूर्व
उहासि को ही जागरण, समझ चले है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
कहते सब नशे में है मात्र हम ही नशे से दूर
उठापटक अब बाहर नहीं खुद से करते है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
अब भी शागिर्दों की भीड़ में सुकूं पाते है वो
अभी भी दो कदम का फासला रखते है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
देखना कोशिशों से ! तो थोड़ी और कीजिये
स्वभूल स्वरुक शीशे में 'स्व' को ही देखिये
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
अजीब शख्सियत रखते है किले के मालिक
ख़ास खुद, दूजे को खासमखास कहते है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
मुम्किन है खासमखास किनारे पे लग जाये
खास की नाव पे चढ़ के वो पार भी हो जाएँ
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
तप की भट्टी खौले सपनो में इक और पैंग
इस जन्म से उस जन्म भेद सीने लगे है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
आदतन मजबूर, वीरता शख्सियत उनकी
खूंटे से बंधे घोड़े खुले मैदान में दौड़ाते है वे
द्वित्व संसार में अद्वैत खोजने चले वो
नामुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
नामुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
यूँ ज्यूँ शराबी डूब नशे में योग लिप्त हो
नित नए प्रयोग करे प्रयोगशाला बने है वो
रात भर सोये खर्राटें भर भर के, भोर पूर्व
उहासि को ही जागरण, समझ चले है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
कहते सब नशे में है मात्र हम ही नशे से दूर
उठापटक अब बाहर नहीं खुद से करते है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
अब भी शागिर्दों की भीड़ में सुकूं पाते है वो
अभी भी दो कदम का फासला रखते है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
देखना कोशिशों से ! तो थोड़ी और कीजिये
स्वभूल स्वरुक शीशे में 'स्व' को ही देखिये
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
अजीब शख्सियत रखते है किले के मालिक
ख़ास खुद, दूजे को खासमखास कहते है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
मुम्किन है खासमखास किनारे पे लग जाये
खास की नाव पे चढ़ के वो पार भी हो जाएँ
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
तप की भट्टी खौले सपनो में इक और पैंग
इस जन्म से उस जन्म भेद सीने लगे है वो
द्वित्व के संसार में अद्वैत खोजने चले वो
ना-मुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
आदतन मजबूर, वीरता शख्सियत उनकी
खूंटे से बंधे घोड़े खुले मैदान में दौड़ाते है वे
द्वित्व संसार में अद्वैत खोजने चले वो
नामुमकिन को मुमकिन करने चले है वो
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