Friday 29 April 2016

अपने आधे -आधे को पूरा करता वर्तुल


                                     
एक लूप जब बन जाता है तो सब कहने  लगते  है
वो देखो ! फलाना !  कैसे कोल्हू के बैल सा घूम रहा है
गोल  गोल, अपनी ही धुरी पे  आधे आधे को पूरा करता !
इधर आधे पे खड़े आधे  दूसरे का अनुमान  भी नहीं होता !
फिसलन ऐसी की एक कदम उठाओ बाकि फिसलते  जाते है !
नदी  के किनारे हरी काई  की मोटी चादर  बिछी नर्म बिछौने सी 
इस पहले  को  अपने  ही  दूसरे कदम का अंदाजा भी  नहीं  होता !
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अब मासूम न समझिए शातिर क़दमों को, हस्ती को ही निरीह बना दें 
खूब खेले हुए है ये अकेलेरस्सी पे चलना भी इनको खूबआता है 
अनजाने  लगते  धक्के  से  मजबूर  है , वो ! करें तो क्या करें 
गेंद कीचड़ के उछालना जोर जोर से  इनको  भी आता है 
इस पार खड़े सब को इक इक कर फिसलते देख रहे थे
कि एक कदम तो साथ था, दूजा हवा में लहरा गया 
फिर तो छपाक से  कूद पड़े " हर गंगे " बोल के 
अपने आधे -आधे को पूरा करता वर्तुल 
कैसे ! किस्सा- ए - ड्रम बन गया 

                                     
                      ©  Lata   

1 comment:

  1. There are many kind of circle you may find in spiritual journey ... there you may find to self best of any of one side .. on second side you may go but after attain certain austerity . and after reach both sides , when you set in middle , this satire make you big laugh ! for sure !

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