जब मैं वृक्षरूप बात कहता हूँ
शब्द विस्तार पाता हूँ !
शब्द विस्तार पाता हूँ !
जब में पुष्परूप बात करता हूँ
सुगंध स्वतः आती है !
सुगंध स्वतः आती है !
और जब जड़रूप बात करता हूँ
गहन मौन छा जाता है !
गहन मौन छा जाता है !
फिर कोई फल इसी वृक्ष पे आ
चिड़ियों को बुलाता है !
चिड़ियों को बुलाता है !
चिड़ियाँ अपनी चोंच से फल से
कुछ बीज निकालती है
कुछ बीज निकालती है
इन सफल असफल प्रयासों में
फूल इत्र बीज हाथ में
फूल इत्र बीज हाथ में
कुछ सुख धरती पे गिर जाते है
फिर से पौध बनने को
फिर से पौध बनने को
सब कुछ यूँ ही चलता रहता है
प्राकतिक क्रमबद्ध है
प्राकतिक क्रमबद्ध है
No comments:
Post a Comment