प्रिय शाश्वत , प्रेम !
चिरयौवन आशीषयुक्त तुम
आश्वस्त हूँ मैं
कर्म-चक्र में घूमती
गतिशील हूँ,
गतियुक्त तुम भी ,
फिर भी
विश्वास पूरित हूँ ,
कहती हूँ
मिलूंगी ...... तुमको !
edited on 27 -06-2018
जहाँ प्रेम के सरोवर में
समाधि के कमल खिलते हैं,
जहाँ आनंद के लोक में
उत्सव के दीप जलते हैं,
जहाँ जीवन के कैनवास पे
शाश्वत के रंग बिखरते हैं…
जहाँ मौन के महासागर में
शून्य की नाव तिरती है,
जहाँ मन के शिखरों पे
करुणा की बदली
घिरती और बरसती है,
जहाँ भगवत्ता के आयाम में
अनुग्रह व अहोभाव की
हवाएं बहती हैं...
साक्षी के आकाश में श्रद्धा का
चन्द्रमा चमकता है...
जहाँ हर कण महकता है,
हर क्षण महकता है...
जहाँ जीवन बहता है-
समस्त विपरीतताओं को
अपने में समेट कर,
जहाँ चिर पुरातन चिर नवीन
सम्मलित नृत्य करते हैं
वर्तमान के शाश्वत क्षण में...
देखो ! ऊर्जातन्तु के
असंख्य चमकते धागों
में उलझ उन अँधेरे में
रुकना ! अकेले बढ़ न
जाना ! मेरा इंतजार
करना, सदियों के
इंतजार बाद अगर
मिल जाऊं तो !
हाथ थाम लेना
पूरे अहसास के साथ
अधूरे अर्थों को पूरा करने
जहाँ से जिस पल से
हम साथ हुए थे कभी
उस पल उस क्षण में
उस जीवन में,मेरा "आज"
पल पल हौले हौले बहता है
कहती हूँ मिलूंगी मैं तुमको
वहीँ ! मेरा इन्तजार करना ..
© Lata Tewari 18 /04 / 2016
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