Tuesday 19 April 2016

योगी का भ्रम



लय  संगीत नृत्य संयुक्त

छम्छम् मोहिनी चलती है 

सूखे में जीवन जी लेती है 

श्वेतबर्फ में ऊष्मा देती है



योगी अंतस्थ ध्यान में है 

इंद्रियां अंतरधार से मिली

बाह्यनेत्रगर्वितंतस्स्थित 

बन बैठे अनुभव की खान


पर अंतर्मन बसी मोहिनी 

आधे अंग  का आधा भाग 

लहू में तरंग हो बन मिली

नटिनीनृत्ययुक्तभामिनि


मौन  बोल उठता भाव में 

कभी  चित्र नृत्य करते है 

पत्थरो से फूटे यूँ सरगम 

बूंदों से यूँ गीत टपकते है


मोहिनी तू ही है तरंगिनी 

तुझसे कौन अलग कब है 

रूप बदले योगीभोगी संग 

शिव की शक्तिअर्धांगिनी


कीचड़ में खिले कमल सी 

कंटक में महके गुलाब सी 

मेघों में चमकी तड़ित सी 

हृद्यलास्य बनी कामिनी


योगी का  तू यौगिक भ्रम

धनीमन में संविधानधन 

भग्व्ति युक्त भगवन वो 

शौर्यमें ओज वही नटिनी


संगीत हो बसे लयतान में 

प्रेमीमुख के छन्द में वोही

किसकोकरते अलगथलग 

बुन-उधेड क्या सम्भालोगे 


कण-कण, मन-मन में रहे 

तानबान क्रम जो खुद बुने 

रंगत हो चित्र में खुद उभरे 

हरी ॐ तत्सत ॐ हरी ॐ


रे वस्त्र !अथक प्रयासरत ! 

था करना,क्या कर रहे हो !

कहते हो कुछ नहीं चाहिए 

महल कौन सा बना रहे हो 


         ॐ हरी ॐ

Pranam

No comments:

Post a Comment