Photo source ; Deva Premal and Miten
सच्चाईयों के शहर में सच्चाइयां न ढूंढ
जर्रे जर्रे में सच्चाईयों की पौध है,वृक्ष है
बागीचे ताल नदी बावली और फव्वारे है
खाद बीज फल फूल सच्चाई के लगते है
सड़कों में चलते लोग सचके भागीदार है
साझीदार! यहाँ पे कुछ झूठ भी है क्या?
या तो कहदो! झूठ के शहर में रहते झूठ
वोभी सच-झूठ का एक बढ़ा झूठासच है
जर्रे जर्रे में मिलते झूठ पौध और वृक्ष है
फल फूल बीज खाद पानी हवा बेमानी है
माया के महल बगीचे तालाब औ बावली
झरने फव्वारे भी झूठ से झिलमिलाते है
कह दो इन परछाईयों से इनके झूठे सच
या इनके सच्चे झूठ को सच्चाझूठ जान
जर्रे जर्रे में जी रही है परछाईयों की भीड़
या इनके सच्चे झूठ को सच्चाझूठ जान
जर्रे जर्रे में जी रही है परछाईयों की भीड़
परछाईयों के शहर की; परछाईयाँ न ढूंढ
सड़कों पे दिखते झूठ के सब भागीदार है
साझीदार ! यहाँ पे कुछ सच भी है क्या ?
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