Thursday 21 April 2016

हवा ही हवा है


कभी सर्द कभी गर्म, कभी भीगी सी 
उबासी हवा है 
हवा गलियाँ चौबारे, हवा के शहर में 
दस्तक हवा है 
वख्ती गर्त में माशूक मौला,सन्नाटा   
कहती हवा है 

हवा के बागों के रंगी गुलों की दास्ताँ  
बयानें हवा है
हवा के शहर में ख़ुदा भी हवा है याके 
हवा ही ख़ुदा  है 
झिलमिल सपनो की नीवं में बसती   
हवा ही हवा है
पत्थर के जो दिखते,निकलते रेत के 
बवंडर हवा है 
धूलधुंध में अधूरेरिश्ते उड़ते पतंग से 
लहराती हवा है

अम्बर से छलके भरी सुराही, जमीं पे 
मधुशाळा हवा है 
उड़ते है पीने वाले , उड़ते पिलाने वाले 
मदमस्त हवा है
जमीं से आसमां तक छाया कालजाल 
हवा ही हवा है
इत उत डोलडोल गोलगोल घूमती जो 
हवा ही हवा है


सूखे पत्तों से सपनों को उड़ा देती ऐसी 
हवा देती हवा है
हरियाली में लचकती लहलहाती वो 
हवा ही हवा है
एक कुहक एक गर्ज गम्भीर;सभी में 
हवा ही हवा है
बिन टोक अंदर बाहर विचरे किले के 
मस्तानी हवा है

जाते कहती - भूत हूँ ! न  रुक  पाऊँगी 
आते बोले लो ! जाती हूँ
प्राण में हो रची बसी नजर न आये वो
मस्तानी हवा है 
कंठ देश से प्रकट छुईमुई सी आभासों 
में रहती हवा है 
क्यूंकि यहाँ से वहां तक हवा ही हवा है 
हवा ही हवा है 
अदृश्य के रहस्य भेदभेदनी अदृश्यिनी  
मायावी हवा है 

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