यार जुलाहे!
सुन जुलाहे ! कुछ तो बता कैसे बुनी होगी तूने रेशमी चादर ! चाक पे कैसे चढ़ाये धागे तूने जिसमे सबको पिरो दिया और बुन दिया सबको इन धागों के संग गजब कारीगरी तेरी उँगलियों की जब दौड़ायीं होंगी तूने उन धागों पे
कैसे कैसे रंग उभारे तूने ! सुना है ,बेहतरीन सातों रंग भी तेरे ही है खेती भी तू अपनी ही कर लेता है काते हुए एक एक धागे तेरी उँगलियों से हो गुजरे है , घूमती गोल तकली भी तेरी क़सीदे में तू उस्ताद है महीनियत से अक्स उभारता है रंग भी खूब कहना मानते है तेरा किसी सर्कस के मंजे खिलाडी जैसा तू सटीक सधा और खुला कारोबार तेरा है वाह ! कैसे टाँके होंगे तूने खूबसूरती से झिलमिल सितारे सूरज चाँद चमकते जगमग मान गए नायब है हुनर तेरा उस्ताद यूँ ही तो नहीं तू उस्तादों का उस्ताद है तेरा शागिर्द वो मेरा उस्ताद एक जुलाहा मैं उसका शागिर्द भी एक जुलाहा हूँ पर उसकी अपनी चादर है मेरी अपनी अपनी चादर बिलकुल नहीं बांटता मुझसे कहता है! है तो कपास तेरा भी, चाक पे चढ़ा और खुद अपनी चादर बुन, रंग डाल उतार के रख दे और जताने को रख भी,देता है सहेज के बिना सिलवट की कहता जाता ऐसे कर तू भी ! हूबहू तेरे जैसी चादर उसकी भी और मेरी भी कोई फर्क मुझे तो नजर नहीं आता , बस ! इतना के ..... तेरी चादर में न तो रंग टिकते न ही सिलवट पड़ती न ही सितारे कभी टूट गिरते है सदियों से झिलमिलाती तेरी चादर सातों रंग बदलती पर उसपे कोई रंग नहीं उस्ताद ! अपनी उस्तादी में तो रंग भी.. सिलवट भी, दोनों साथ उभर के आ ही जाते है कुछ तो सीखा हमें भी अपना हुनर, यार जुलाहे !
नोट - Very raw poetical expression, flow find is as it is ... so no rhythm no beat ... Except; my heartbeat ... enjoy reading ... my many thanks to Chaman Nigam ji she provides a hint of the word "Yaar julahe -यार जुलाहे " and many thanks to Guljar sahab for this word 'Yaar', i never read their that poem till yet, but as I get opportunity sure will read.
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