Tuesday, 26 September 2017

"ॐ" विलय


तुम्हारे अंदर रह तुममे तुमको खोजता रहा
कैसे मिलूंगा तुमसे तुम्हारे अंदर विचरता हूँ
पैरों की धूल हूँ , अभी चलना शुरू किया है
ठानी है! माथे के दमकते हीरे तक आऊंगा
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अस्तित्व सम्पूर्ण तुम मैं तुम्हारा क्षुद्र धूलकण
तुमसे उठ खेल अंत तुम्मे विलय हो जाऊंगा
आता हूँ मस्तकमणि तक हस्तिसम पा लूंगा
तुझको समर्पित तुझको अपना बना ही लूंगा
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गजमुक्ता से रस जो टपके, मदांध कहाऊंगा 
अपनी सुगंध से मस्त पागल प्रेमी हो जाऊंगा
न सोचूं इस्की उस्की, फिर न महंत न सम्राट
फिर लौट के न आऊं एकबार जो पा पाउँगा

© लता 
२६-०९-२०१७
संध्या १५ (०3) : ५९ (59pm)

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