Saturday 23 September 2017

मेरा हमअक्स कुछ ऐसा हो



मेरा हमअक्स कुछ ऐसा हो,दीप मेरा-
बहते प्रेम का दरिया हो !
हमअक्स -प्रतिबिम्ब 
भाषा बोलूं सरल उसके अर्थ गंभीर हो
भावों के सुलझे ख़म हों !
ख़म-घुमाव 
प्रज्ज्वलित दीपमाला मौन में जब उतरे
तो बहती हवायें गुम हो !
गुम-खोयी /शांत 
पिय संग बावरी हो तो रंगो की रुनझुन 
घन का मौसम सघन हो !


नाव उतारुं जब उफनती तेज धारा में
लगन दिल में हांथो दम हो!

© लता 
२२ -०९-२०१७ 
१७:५५ ( ०५:५५ ) संध्या 

No comments:

Post a Comment