Prayers and life-key the creative word " word"
अध्याय-13
☞ प्रार्थना ☜
हमेशा अपने-आप को प्रार्थना करो
(विषय से जुडी एक कथा ओशो संकलन से )
(विषय से जुडी एक कथा ओशो संकलन से )
एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें...बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते...
जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे...
एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी...संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई...
संत...मुझे लगता है कि आप मेरी ही उम्मीद कर रहे थे...
पिता...नहीं, आप कौन हैं...
संत ने अपना परिचय दिया...और फिर कहा...मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास था...
पिता...ओह ये बात...खाली कुर्सी...आप...आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद करेंगे...
संत को ये सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाज़ा बंद कर दिया...
पिता...दरअसल इस खाली कुर्सी का राज़ मैंने किसी को नहीं बताया...अपनी बेटी को भी नहीं...पूरी ज़िंदगी, मैं ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है...मंदिर जाता था, पुजारी के श्लोक सुनता...वो सिर के ऊपर से गुज़र जाते....कुछ पल्ले नहीं पड़ता था...मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया...लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मिला...उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ नहीं भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है....उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो...फिर विश्वास करो कि वहां भगवान खुद ही विराजमान हैं...अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो, जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो...मैंने ऐसा करके देखा...मुझे बहुत अच्छा लगा...फिर तो मैं रोज़ दो-दो घंटे ऐसा करके देखने लगा...लेकिन ये ध्यान रखता कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले...अगर वो देख लेती तो उसका ही नर्वस ब्रेकडाउन हो जाता या वो फिर मुझे साइकाइट्रिस्ट के पास ले जाती...
ये सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की...सिर पर हाथ रखा और भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा...संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था...इसलिए विदा लेकर चले गए..
दो दिन बाद बेटी का संत को फोन आया कि उसके पिता की उसी दिन कुछ घंटे बाद मृत्यु हो गई थी, जिस दिन वो आप से मिले थे...
संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई...
बेटी ने जवाब दिया...नहीं, मैं जब घर से काम पर जा रही थी तो उन्होंने मुझे बुलाया...मेरा माथा प्यार से चूमा...ये सब करते हुए उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी, जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी...जब मैं वापस आई तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे...लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज़ भी देखी...वो ऐसी मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाया हो...संत जी, वो क्या था...
ये सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले...बड़ी मुश्किल से बोल पाए...काश, मैं भी जब दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊं..
मीरदाद : तुम व्यर्थ में प्रार्थना करते हो
जब तुम अपने आप को छोड़
देवताओं को सम्बोधित करते हो।
क्योकि तुम्हारे अंदर है
आकर्षित करने की शक्ति,
जैसे दूर भगाने की की शक्ति तुम्हारे अंदर है।
और तुम्हारे अंदर हैं वे वस्तुएँ
जिन्हें तुम आकर्षित करना चाहते हो,
जैसे वे वस्तुएँ जिन्हें तुम दूर
भगाना चाहते हो तुम्हारे अंदर हैं।
आकर्षित करने की शक्ति,
जैसे दूर भगाने की की शक्ति तुम्हारे अंदर है।
और तुम्हारे अंदर हैं वे वस्तुएँ
जिन्हें तुम आकर्षित करना चाहते हो,
जैसे वे वस्तुएँ जिन्हें तुम दूर
भगाना चाहते हो तुम्हारे अंदर हैं।
क्योंकि किसी वस्तु को लेने का
सामर्थ्य रखना उसे देने का
सामर्थ्य रखना भी है।
सामर्थ्य रखना उसे देने का
सामर्थ्य रखना भी है।
जहां भूख है, वहां भोजन है।
जहां भोजन है, वहां भूख भी अवश्य होगी।
जहां भोजन है, वहां भूख भी अवश्य होगी।
भूख की पीड़ा से व्यथित होना
तृप्त होने का आनंद लेने का सामर्थ्य रखना है।
तृप्त होने का आनंद लेने का सामर्थ्य रखना है।
हाँ, आवश्यकता में ही
आवश्यकता की पूर्ति है।
आवश्यकता की पूर्ति है।
क्या चाबी ताले के प्रयोग
का अधिकार नहीं देती?
का अधिकार नहीं देती?
अथवा क्या ताला चाबी के प्रयोग
का अधिकार नहीं देता ?
क्या ताला और चाबी दोनों दरवाजे के प्रयोग का अधिकार नहीं देते ?
जब भी तुम चाबी गँवा बैठो
या उसे कहीं रखकर भूल जाओ,
तो लोहार से आग्रह करने के लिये उतावले मत होओं।
लोहार ने अपना काम कर दिया है,
और अच्छी तरह से कर दिया है;
उसे वही काम बार-बार
करने के लिये मत कहो।
का अधिकार नहीं देता ?
क्या ताला और चाबी दोनों दरवाजे के प्रयोग का अधिकार नहीं देते ?
जब भी तुम चाबी गँवा बैठो
या उसे कहीं रखकर भूल जाओ,
तो लोहार से आग्रह करने के लिये उतावले मत होओं।
लोहार ने अपना काम कर दिया है,
और अच्छी तरह से कर दिया है;
उसे वही काम बार-बार
करने के लिये मत कहो।
तुम अपना काम करो और
लोहार को अकेला छोड़ दो;
क्योंकि जब एक बार वह तुमसे निपट चूका है,
उसे और भी काम करने हैं।
लोहार को अकेला छोड़ दो;
क्योंकि जब एक बार वह तुमसे निपट चूका है,
उसे और भी काम करने हैं।
अपनी स्मृति में से दुर्गन्ध
और कचरा निकाल फेंको,
और चाबी तुम्हे निश्चय ही मिल जायेगी|
और कचरा निकाल फेंको,
और चाबी तुम्हे निश्चय ही मिल जायेगी|
अकथ प्रभु ने उच्चारण द्वारा
जब तुम्हे रचा तो तुम्हारे रूप
में उसने अपनी ही रचना की।
जब तुम्हे रचा तो तुम्हारे रूप
में उसने अपनी ही रचना की।
इस प्रकार तुम भी अकथ हो।
प्रभु ने तुम्हे अपना कोई
अंश प्रदान नहीं किया–
क्योंकि वह अंशों में नहीं बाँट सकता;
उसने तो अपना समग्र,
अविभाज्य, अकथ ईश्वरत्व ही
तुम सबको प्रदान कर दिया।
इससे बड़ी किस विरासत की
कामना कर सकते हो तुम ?
प्रभु ने तुम्हे अपना कोई
अंश प्रदान नहीं किया–
क्योंकि वह अंशों में नहीं बाँट सकता;
उसने तो अपना समग्र,
अविभाज्य, अकथ ईश्वरत्व ही
तुम सबको प्रदान कर दिया।
इससे बड़ी किस विरासत की
कामना कर सकते हो तुम ?
और तुम्हारी अपनी कायरता का
अन्धेपन के सिवाय और कौन,
या क्या, तुम्हे पाने से रोक सकता हैं ?
फिर भी, कुछ–अन्धे कृतध्न लोग–
अपनी विरासत के लिये
कृतज्ञं होने के बजाय,
उसे प्राप्त करने की
राह खोजने के बजाय,
अन्धेपन के सिवाय और कौन,
या क्या, तुम्हे पाने से रोक सकता हैं ?
फिर भी, कुछ–अन्धे कृतध्न लोग–
अपनी विरासत के लिये
कृतज्ञं होने के बजाय,
उसे प्राप्त करने की
राह खोजने के बजाय,
प्रभु को एक प्रकार का कूडाघर
बना देना चाहते हैं
जिसपे वे अपने दांत
और पेट के दर्द,
व्यापार में अपने घाटे,
अपने झगडे, अपनी बदले
की भावनाएं तथा
अपनी निद्राहीन रातें ले
जाकर फेंक सकें।
बना देना चाहते हैं
जिसपे वे अपने दांत
और पेट के दर्द,
व्यापार में अपने घाटे,
अपने झगडे, अपनी बदले
की भावनाएं तथा
अपनी निद्राहीन रातें ले
जाकर फेंक सकें।
कुछ अन्य लोग प्रभु को
अपना निजी कोष बना लेना चाहते हैं
जहां से वे जब चाहें संसार की
चमकदार निकम्मी वस्तुओं में से
हर ऐसी वस्तु को पाने की
आशा रखते हैं जिसके
लिए वे तरस रहे हैं।
अपना निजी कोष बना लेना चाहते हैं
जहां से वे जब चाहें संसार की
चमकदार निकम्मी वस्तुओं में से
हर ऐसी वस्तु को पाने की
आशा रखते हैं जिसके
लिए वे तरस रहे हैं।
कुछ अन्य लोग प्रभु को
एक प्रकार का निजी मुनीम
बना लेना चाहते हैं,
जो केवल यह हिसाब ही न रखे
कि वे किन चीजों के लिये दूसरों के कर्जदार हैं
और किन चीजों के लिये उनके कर्जदार है,
बल्कि उनके दिये कर्ज को वसूल भी करे
और उनके उनके खाते में हमेशा
एक बड़ी रकम जमा दिखाये।
हाँ…..
अनेक तथा नाना प्रकार के हैं
वे काम जो मनुष्य प्रभु को सौंप देता है।
एक प्रकार का निजी मुनीम
बना लेना चाहते हैं,
जो केवल यह हिसाब ही न रखे
कि वे किन चीजों के लिये दूसरों के कर्जदार हैं
और किन चीजों के लिये उनके कर्जदार है,
बल्कि उनके दिये कर्ज को वसूल भी करे
और उनके उनके खाते में हमेशा
एक बड़ी रकम जमा दिखाये।
हाँ…..
अनेक तथा नाना प्रकार के हैं
वे काम जो मनुष्य प्रभु को सौंप देता है।
फिर भी बहुत थोड़े लोग ऐसे होंगे
जो सोचते हों कि यदि सचमुच
इतने सारे काम करने की
जिम्मेदारी प्रभु पर है
तो वह अकेला ही उनको निपटा लेगा,
और उसे यह आवश्यकता नहीं होगी
कि कोई उसे प्रेरित करता रहे
या अपने कामों की याद दिलाता रहे।
जो सोचते हों कि यदि सचमुच
इतने सारे काम करने की
जिम्मेदारी प्रभु पर है
तो वह अकेला ही उनको निपटा लेगा,
और उसे यह आवश्यकता नहीं होगी
कि कोई उसे प्रेरित करता रहे
या अपने कामों की याद दिलाता रहे।
क्या प्रभु को तुम उन घड़ियों की
याद दिलाते हो
जब सूर्य उदय होना है
और जब चन्द्र को अस्त ?
क्या उसे तुम दूर के खेत में पड़े
अनाज के उस दाने की याद दिलाते हो
जिसमे जीवन फूट रहा है ?
याद दिलाते हो
जब सूर्य उदय होना है
और जब चन्द्र को अस्त ?
क्या उसे तुम दूर के खेत में पड़े
अनाज के उस दाने की याद दिलाते हो
जिसमे जीवन फूट रहा है ?
क्या उसे तुम उस मकडी की
याद दिलाते हो
जो रेशे से अपना कौशल-पूर्ण
विश्राम-गृह बना रही है ?
याद दिलाते हो
जो रेशे से अपना कौशल-पूर्ण
विश्राम-गृह बना रही है ?
क्या उसे तुम घोंसले में पड़े
गौरेया के छोटे-छोटे बच्चों की
याद दिलाते हो ?
गौरेया के छोटे-छोटे बच्चों की
याद दिलाते हो ?
क्या तुम उसे उन अनगिनत
वस्तुओं की याद दिलाते हो
जिनसे यह असीम ब्रह्माण्ड भरा हुआ है ?
वस्तुओं की याद दिलाते हो
जिनसे यह असीम ब्रह्माण्ड भरा हुआ है ?
तुम अपने तुच्छ व्यक्तित्व को
अपनी समस्त अर्थहीन
आवश्यकताओं सहित बार-बार
उसकी स्मृति पर क्यों लादते हो ?
अपनी समस्त अर्थहीन
आवश्यकताओं सहित बार-बार
उसकी स्मृति पर क्यों लादते हो ?
क्या तुम उसकी दृष्टि में गौरेया,
अनाज और मकड़ी की तुलना में
कम कृपा के पात्र हो ?
अनाज और मकड़ी की तुलना में
कम कृपा के पात्र हो ?
तुम उनकी तरह अपने उपहार
स्वीकार क्यों नहीं करते
और बिना शोर मचाये,
बिना बिना घुटने टेके,
बिना हाथ फैलाये और
बिना चिंता-पूर्वक भविष्य में
झाँके अपना-अपना काम
क्यों नहीं करते ?
स्वीकार क्यों नहीं करते
और बिना शोर मचाये,
बिना बिना घुटने टेके,
बिना हाथ फैलाये और
बिना चिंता-पूर्वक भविष्य में
झाँके अपना-अपना काम
क्यों नहीं करते ?
और प्रभु दूर कहाँ है
कि उसके कानों तक अपनी सनकों
और मिथ्याभिमानों को, अपनी
स्तुतियों और अपनी
फरियादों को पहुँचाने के लिये
तुम्हे चिल्लाना पड़े ?
कि उसके कानों तक अपनी सनकों
और मिथ्याभिमानों को, अपनी
स्तुतियों और अपनी
फरियादों को पहुँचाने के लिये
तुम्हे चिल्लाना पड़े ?
क्या वह
तुम्हारे अंदर और
तुम्हारे चारों ओर नहीं है ?
तुम्हारे अंदर और
तुम्हारे चारों ओर नहीं है ?
जितनी तुम्हारी जिव्हा
तुम्हारे तालू के निकट है,
क्या उसका कान तुम्हारे
मुँह के उससे कहीं
अधिक निकट नहीं है ?
तुम्हारे तालू के निकट है,
क्या उसका कान तुम्हारे
मुँह के उससे कहीं
अधिक निकट नहीं है ?
प्रभु के लिये तो उसका
ईश्वरत्व ही काफी है जिसका
बीज उसने तुम्हारे अंदर रख दिया है।
ईश्वरत्व ही काफी है जिसका
बीज उसने तुम्हारे अंदर रख दिया है।
यदि अपने ईश्वरत्व का बीज
तुम्हे देकर तुम्हारे बजाय
प्रभु को ही उसका ध्यान
रखना होता तो तुममे क्या खूबी होती ?
और जीवन में तुम्हारे करने के
लिये क्या होता ?
तुम्हे देकर तुम्हारे बजाय
प्रभु को ही उसका ध्यान
रखना होता तो तुममे क्या खूबी होती ?
और जीवन में तुम्हारे करने के
लिये क्या होता ?
और यदि तुम्हारे करने को
कुछ भी नहीं है,
बल्कि प्रभु को ही तुम्हारी
खातिर सब करना है,
तो तुम्हारे जीवन का क्या महत्व है ?
कुछ भी नहीं है,
बल्कि प्रभु को ही तुम्हारी
खातिर सब करना है,
तो तुम्हारे जीवन का क्या महत्व है ?
तुम्हारी सारी प्रार्थना से क्या लाभ है ?
अपनी अनगिनत चिंताएँ और
आशाएँ प्रभु के पास मत ले जाओ।
जिन दरवाजों की चाबियाँ
उसने तुम्हे सौंप दी है,
उन्हें तुम्हारी खातिर खोलने
के लिये मिन्नतें मत करो।
अपनी अनगिनत चिंताएँ और
आशाएँ प्रभु के पास मत ले जाओ।
जिन दरवाजों की चाबियाँ
उसने तुम्हे सौंप दी है,
उन्हें तुम्हारी खातिर खोलने
के लिये मिन्नतें मत करो।
बल्कि अपने ह्रदय की विशालता में खोजो।
क्योंकि ह्रदय की विशालता में मिलती है
हर दरवाजे की चाबी।
क्योंकि ह्रदय की विशालता में मिलती है
हर दरवाजे की चाबी।
और ह्रदय की विशालता में मौजूद हैं
वे सब चीजें जिनकी तुम्हे भूख और प्यास है,
चाहे उनका सम्बन्ध बुराई से है या भलाई से।
वे सब चीजें जिनकी तुम्हे भूख और प्यास है,
चाहे उनका सम्बन्ध बुराई से है या भलाई से।
तुम्हारे छोटे से छोटे आदेश
का पालन करने को तैयार
एक विशाल सेना तुम्हारे
इशारे पर काम करने के
लिये तैनात कर दी गयी है।
का पालन करने को तैयार
एक विशाल सेना तुम्हारे
इशारे पर काम करने के
लिये तैनात कर दी गयी है।
यदि वह अच्छी तरह से सज्जित हो,
उसे कुशलतापूर्वक शिक्षण दिया गया हो
और निडरता पूर्वक उसका
संचालन किया गया हो,
तो उसके लिये कुछ भी
करना असम्भव नहीं,
और कोई भी बाधा उसे
अपनी मंजिल पर पहुँचने से रोक नहीं सकती।
उसे कुशलतापूर्वक शिक्षण दिया गया हो
और निडरता पूर्वक उसका
संचालन किया गया हो,
तो उसके लिये कुछ भी
करना असम्भव नहीं,
और कोई भी बाधा उसे
अपनी मंजिल पर पहुँचने से रोक नहीं सकती।
और यदि वह पूरी तरह सज्जित न हो,
उसे उचित शिक्षण न दिया गया हो
और उसका सञ्चालन साहसहीन हो,
तो वह दिशाहीन भटकती रहती है,
या छोटी से छोटी बाधा के सामने
मोरचा छोड़ देती है,
और उसके पीछे-पीछे
चली आती है शर्मनाक पराजय।
वह सेना और कोई नहीं,
उसे उचित शिक्षण न दिया गया हो
और उसका सञ्चालन साहसहीन हो,
तो वह दिशाहीन भटकती रहती है,
या छोटी से छोटी बाधा के सामने
मोरचा छोड़ देती है,
और उसके पीछे-पीछे
चली आती है शर्मनाक पराजय।
वह सेना और कोई नहीं,
साधुओ…
इस समय तुम्हारी रगों में
चुपचाप चक्कर लगा रही
सूक्ष्म लाल कणिकाएँ हैं;
उनमे से हरएक शक्ति का चमत्कार,
इस समय तुम्हारी रगों में
चुपचाप चक्कर लगा रही
सूक्ष्म लाल कणिकाएँ हैं;
उनमे से हरएक शक्ति का चमत्कार,
हरएक तुम्हारे समूचे जीवन का
और समस्त जीवन का–उनकी
अन्तरतम सूक्ष्मताओं सहित–
पूरा और सच्चा विवरण।
और समस्त जीवन का–उनकी
अन्तरतम सूक्ष्मताओं सहित–
पूरा और सच्चा विवरण।
ह्रदय में एकत्रित होती है यह सेना;
ह्रदय में से ही बाहर निकलकर
यह मोरचा लगाती है।
इसी कारण ह्रदय को इतनी
ख्याति और इतना सम्मान प्राप्त है।
ह्रदय में से ही बाहर निकलकर
यह मोरचा लगाती है।
इसी कारण ह्रदय को इतनी
ख्याति और इतना सम्मान प्राप्त है।
तुम्हारे सुख और दुःख के आँसू
इसी में से फूटकर बाहर निकलते हैं।
तुम्हारे जीवन और मृत्यु के भय
दौड़कर इसी के अन्दर घुसते हैं।
तुम्हारी लालसाएँ और कामनाएँ
इस सेना के उपकरण हैं
तुम्हारी बुद्धि इसे अनुशासन में रखती है।
इसी में से फूटकर बाहर निकलते हैं।
तुम्हारे जीवन और मृत्यु के भय
दौड़कर इसी के अन्दर घुसते हैं।
तुम्हारी लालसाएँ और कामनाएँ
इस सेना के उपकरण हैं
तुम्हारी बुद्धि इसे अनुशासन में रखती है।
तुम्हारा संकल्प इससे कवायद करवाता है
और इसकी बागडोर संभालता है ।
जब तुम अपने रक्त को एक प्रमुख
कामना से सज्जित कर लो
जो सब कामनाओं को चुप कर देती है
और उन पर छा जाती है;
और इसकी बागडोर संभालता है ।
जब तुम अपने रक्त को एक प्रमुख
कामना से सज्जित कर लो
जो सब कामनाओं को चुप कर देती है
और उन पर छा जाती है;
और अनुशासन एक प्रमुख विचार को सौंप दो,
तब तुम विश्वास कर सकते हो
कि तुम्हारी वह कामना पूरी होगी।
तब तुम विश्वास कर सकते हो
कि तुम्हारी वह कामना पूरी होगी।
कोई संत भला संत कैसे हो सकता है
जब तक वह अपने मन की
वृति को संत-पद के अयोग्य
हर कामना से तथा हर वि
चार से मुक्त न कर दे,
जब तक वह अपने मन की
वृति को संत-पद के अयोग्य
हर कामना से तथा हर वि
चार से मुक्त न कर दे,
और फिर एक अडिग संकल्प के द्वारा
उसे अन्य सभी लक्ष्यों को
छोड़ केवल संत-पद की प्राप्ति
के लिये यत्नशील रहने का निर्देश न दे?
उसे अन्य सभी लक्ष्यों को
छोड़ केवल संत-पद की प्राप्ति
के लिये यत्नशील रहने का निर्देश न दे?
मैं कहता हूँ कि आदम के समय से
लेकर आज तक की हर पवित्र कामना,
लेकर आज तक की हर पवित्र कामना,
हर पवित्र विचार,
हर पवित्र संकल्प उस मनुष्य की
सहायता के लिये चला आयेगा
जिसने संत-पद प्राप्त करने का
ऐसा दृढ़ निश्चय कर लिया हो।
हर पवित्र संकल्प उस मनुष्य की
सहायता के लिये चला आयेगा
जिसने संत-पद प्राप्त करने का
ऐसा दृढ़ निश्चय कर लिया हो।
क्योंकि सदा ऐसा होता आया है
कि पानी, चाहे वह कहीं भी हो,
समुद्र की खोज करता है
जैसे प्रकाश की किरने
सूर्य को खोजती हैं।
कि पानी, चाहे वह कहीं भी हो,
समुद्र की खोज करता है
जैसे प्रकाश की किरने
सूर्य को खोजती हैं।
कोई हत्यारा अपनी योजनाएँ
कैसे पूरी करता है?
वह कवल अपने रक्त को
उत्तेजित उसमे ह्त्या के
लिये एक उन्माद-भरी
प्यास पैदा करता है,
उसके कण-कण को हत्यापूर्ण
विचारों के कोड़ों की
मार से एकत्र करता है,
और फिर निष्ठुर संकल्प से
उसे घातक बार करने
का आदेश देता है।
कैसे पूरी करता है?
वह कवल अपने रक्त को
उत्तेजित उसमे ह्त्या के
लिये एक उन्माद-भरी
प्यास पैदा करता है,
उसके कण-कण को हत्यापूर्ण
विचारों के कोड़ों की
मार से एकत्र करता है,
और फिर निष्ठुर संकल्प से
उसे घातक बार करने
का आदेश देता है।
मैं तुमसे कहता हूँ कि केन*
से लेकर आज तक का हर
हत्यारा बिना बुलाये
उस मनुष्य की भुजा को
सबल और स्थिर बनाने के
लिये दौड़ा आयेगा
जिस पर ह्त्या का ऐसा नशा सवार हो।
से लेकर आज तक का हर
हत्यारा बिना बुलाये
उस मनुष्य की भुजा को
सबल और स्थिर बनाने के
लिये दौड़ा आयेगा
जिस पर ह्त्या का ऐसा नशा सवार हो।
क्योंकि सदा ऐसा होता आया है
कि कौए, कौओं का साथ देते हैं
और लकड़ बग्घे लकड़-बग्घों का।
कि कौए, कौओं का साथ देते हैं
और लकड़ बग्घे लकड़-बग्घों का।
इसलिये प्रार्थना करना
अपने अंदर एक ही प्रमुख कामना की
एक ही प्रमुख विचार की
एक ही प्रमुख संकल्प की
संचार करना है।
यह अपने आप को इस
तरह सुर में कि जिस वस्तु
के लिये भी तुम प्रार्थना करो,
अपने अंदर एक ही प्रमुख कामना की
एक ही प्रमुख विचार की
एक ही प्रमुख संकल्प की
संचार करना है।
यह अपने आप को इस
तरह सुर में कि जिस वस्तु
के लिये भी तुम प्रार्थना करो,
उसके साथ पूरी तरह एक-सुर,
एक-ताल हो जाओ।
इस ग्रह का वातावरण,
जो अपने सम्पूर्ण रूप में
तुम्हारे ह्रदय में प्रतिबिम्बित है,
एक-ताल हो जाओ।
इस ग्रह का वातावरण,
जो अपने सम्पूर्ण रूप में
तुम्हारे ह्रदय में प्रतिबिम्बित है,
उन सब बातों की आवारा
स्मृतियों से तरंगित है जिन्हें
उसने अपने जन्म से देखा है।
कोई वचन या कर्म;
कोई इक्षा या निःश्वास;
कोई क्षणिक विचार या
अस्थाई सपना; मनुष्य या
पशु का कोई श्वास;
कोई परछाईं; कोई भ्रम ऐसा
नहीं जो आज के दिन तक
अपने-अपने रहस्यमय रास्ते
पर न चलता रहा हो,
स्मृतियों से तरंगित है जिन्हें
उसने अपने जन्म से देखा है।
कोई वचन या कर्म;
कोई इक्षा या निःश्वास;
कोई क्षणिक विचार या
अस्थाई सपना; मनुष्य या
पशु का कोई श्वास;
कोई परछाईं; कोई भ्रम ऐसा
नहीं जो आज के दिन तक
अपने-अपने रहस्यमय रास्ते
पर न चलता रहा हो,
और समय के अंत तक इसी
प्रकार उस पर चलते न रहना हो।
उनमे से किसी एक के साथ भी तुम
अपने ह्रदय का सुर मिला लो,
प्रकार उस पर चलते न रहना हो।
उनमे से किसी एक के साथ भी तुम
अपने ह्रदय का सुर मिला लो,
और वह निश्चय ही उसके तारों
पर धुन बजाने के लिय तेजी से दौड़ा आयेगा।
पर धुन बजाने के लिय तेजी से दौड़ा आयेगा।
प्रार्थना करने के लिए तुम्हे
किसी होंठ या जिव्हा की
आवश्यकता नहीं।
किसी होंठ या जिव्हा की
आवश्यकता नहीं।
बल्कि आवश्यकता है एक मौन,
सचेत ह्रदय की,
एक प्रमुख कामना की,
एक प्रमुख विचार की,
और सबसे बढ़कर,
एक प्रमुख संकल्प की
जो न संदेह करता है न संकोच।
सचेत ह्रदय की,
एक प्रमुख कामना की,
एक प्रमुख विचार की,
और सबसे बढ़कर,
एक प्रमुख संकल्प की
जो न संदेह करता है न संकोच।
क्योंकि शब्द व्यर्थ हैं
यदि प्रत्येक अक्षर में ह्रदय
अपनी पूर्ण जागरूकता के
साथ उपस्थित न हो।
यदि प्रत्येक अक्षर में ह्रदय
अपनी पूर्ण जागरूकता के
साथ उपस्थित न हो।
और जब ह्रदय उपस्थित और सजग है,
तो जिव्हा के लिये यह बेहतर होगा कि
वह सो जाये,
या मुहरबन्द होंठों के पीछे छिप जाये।
तो जिव्हा के लिये यह बेहतर होगा कि
वह सो जाये,
या मुहरबन्द होंठों के पीछे छिप जाये।
न ही प्रार्थना करने के लिये
तुम्हें मन्दिरों की आवश्यकता है।
जो कोई अपने ह्रदय में
मन्दिर को नहीं पा सकता,
वह किसी भी मन्दिर में
अपने ह्रदय को नहीं पा सकता।
तुम्हें मन्दिरों की आवश्यकता है।
जो कोई अपने ह्रदय में
मन्दिर को नहीं पा सकता,
वह किसी भी मन्दिर में
अपने ह्रदय को नहीं पा सकता।
फिर भी मैं तुमसे यह सब कहता हूँ,
और जो तुम जैसे हैं उनसे भी,
किन्तु प्रत्येक मनुष्य से नहीं,
और जो तुम जैसे हैं उनसे भी,
किन्तु प्रत्येक मनुष्य से नहीं,
क्योंकि अधिकाँश लोग अभी भ्रम में हैं।
वे प्रार्थना की जरुरत तो महसूस करते हैं,
लेकिन प्रार्थना करने का ढंग नहीं जानते।
वे शब्दों के बिना प्रार्थना कर नहीं सकते,
वे प्रार्थना की जरुरत तो महसूस करते हैं,
लेकिन प्रार्थना करने का ढंग नहीं जानते।
वे शब्दों के बिना प्रार्थना कर नहीं सकते,
और शब्द उन्हें मिलते नहीं
जब तक शब्द उनके मुँह में न
डाल दिये जायें।
और जब उन्हें अपने ह्रदय
की विशालता में विचरण
करना पड़ता है तो वे खो जाते हैं,
और भयभीत हो जाते हैं;
जब तक शब्द उनके मुँह में न
डाल दिये जायें।
और जब उन्हें अपने ह्रदय
की विशालता में विचरण
करना पड़ता है तो वे खो जाते हैं,
और भयभीत हो जाते हैं;
परन्तु मंदिरों की दीवारों के
अंदर और अपने जैसे प्राणियों
के झुंडों के बीच उन्हें सांत्वना
और सुख मिलता है।
अंदर और अपने जैसे प्राणियों
के झुंडों के बीच उन्हें सांत्वना
और सुख मिलता है।
कर लेने दो उन्हें अपने मंदिरों का निर्माण।
कर लेने दो उन्हें अपनी प्रार्थनाएँ।
किन्तु तुम्हें तथा प्रत्येक मनुष्य
को दिव्य ज्ञान के लिये
प्रार्थना करने का आदेश देता हूँ।
कर लेने दो उन्हें अपनी प्रार्थनाएँ।
किन्तु तुम्हें तथा प्रत्येक मनुष्य
को दिव्य ज्ञान के लिये
प्रार्थना करने का आदेश देता हूँ।
उसके सिवाय अन्य किसी
वस्तु की चाह रखने का अर्थ है
कभी तृप्त न होना।
वस्तु की चाह रखने का अर्थ है
कभी तृप्त न होना।
याद रखो,
जीवन की कुंजी "सिरजनहार शब्द” है। ‘
जीवन की कुंजी "सिरजनहार शब्द” है। ‘
सिरजनहार शब्द’ की कुंजी प्रेम है।
प्रेम की कुंजी दिव्य ज्ञान है।
अपने ह्रदय को इनसे भर लो,
और बचा लो अपनी जिव्हा को
अनेक शब्दों की पीड़ा से,
और रक्षा कर लो
अपनी बुद्धि का अनेक प्रार्थनाओं के बोझ से,
और मुक्त कर लो अपने ह्रदय
को सब देवताओं की दासता से
जो तुम्हे उपहार देकर
अपना दास बना लेना चाहते हैं;
प्रेम की कुंजी दिव्य ज्ञान है।
अपने ह्रदय को इनसे भर लो,
और बचा लो अपनी जिव्हा को
अनेक शब्दों की पीड़ा से,
और रक्षा कर लो
अपनी बुद्धि का अनेक प्रार्थनाओं के बोझ से,
और मुक्त कर लो अपने ह्रदय
को सब देवताओं की दासता से
जो तुम्हे उपहार देकर
अपना दास बना लेना चाहते हैं;
जो तुम्हें एक हाथ से केवल
इसलिए सहलाते हैं कि दूसरे
हाथ से तुम पर बार का सकें;
जो तुम्हारे द्वारा प्रशंसा
किये जाने पर संतुष्ट और कृपालु होते हैं,
इसलिए सहलाते हैं कि दूसरे
हाथ से तुम पर बार का सकें;
जो तुम्हारे द्वारा प्रशंसा
किये जाने पर संतुष्ट और कृपालु होते हैं,
किन्तु तुम्हारे द्वारा कोसे जाने
पर क्रोध और बदले की भावना से भर जाते हैं;
जो तब तक तुम्हारी बात नहीं
सुनते जब तक तुम उन्हें पुकारते नहीं;
पर क्रोध और बदले की भावना से भर जाते हैं;
जो तब तक तुम्हारी बात नहीं
सुनते जब तक तुम उन्हें पुकारते नहीं;
और तब तक तुम्हे देकर
बहुधा देने पर पछताते हैं;
जिनके लिये तुम्हारे आँसू अगरबत्ती हैं,
जिनकी शान तुम्हारी दयनीयता में है।
बहुधा देने पर पछताते हैं;
जिनके लिये तुम्हारे आँसू अगरबत्ती हैं,
जिनकी शान तुम्हारी दयनीयता में है।
हाँ…….
अपने ह्रदय को इन सब देवताओं
से मुक्त कर लो, ताकि तुम्हें उसमे
वह एकमात्र प्रभु मिल सके जो
तुम्हें अपने आप से भर देता है चाहता है
की तुम सदैव भरे रहो।
अपने ह्रदय को इन सब देवताओं
से मुक्त कर लो, ताकि तुम्हें उसमे
वह एकमात्र प्रभु मिल सके जो
तुम्हें अपने आप से भर देता है चाहता है
की तुम सदैव भरे रहो।
बैनून: कभी तुम मनुष्य को
सर्वशक्तिमान कहते हो तो
कभी उसे लावारिस
कहकर तुच्छ बताते हो।
लगता है तुम हमें धुन्ध में लाकर छोड़ रहे हो।
सर्वशक्तिमान कहते हो तो
कभी उसे लावारिस
कहकर तुच्छ बताते हो।
लगता है तुम हमें धुन्ध में लाकर छोड़ रहे हो।
मीरदाद हँसता है और आकाश की और देखता .. मौन से कुछ अलोकिक आता दिखाई देता है ….
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