Wednesday, 24 August 2016

तुम्हारी "सीमा"


हाथ फैलाओ पाखी की तरह
उड़ान भरो ऊँची ऊँची ,
भूलो नहीं पंखो की हद 
बस एक हाथ की
है तुम्हारी सीमा
अपनी सोच संग तैरो गहराई में
नापो गंभीरता मछली जैसे
भूलो नहीं तैरने की हद
बस एक हाथ की
है तुम्हारी सीमा
अपने कर्म को खूब परखो
भाग्य से खेलो जीभर के
भूलो नहीं पारखी बन
बस एक हाथ की
है तुम्हारी सीमा
अपनी सीमा को जानो प्राणी
देह की बुद्धि भाव की
जीवन की शक्ति की
तनमन की हद है
बस एक हाथ की
बस एक हाथ की दूरी पे रहता
समाज, धर्म, व्यव्हार का भार
नियम , रीति-रिवाज
सम्बन्ध, प्रेम से दुरी
बस एक हाथ की
पलभर बैठो सिद्धासन पे देखो
परखो दूरी सुखासन और
शवासन के बीच में
चांदीरेख बंधी है
बस एक हाथ की

Lata Tewari

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