Wednesday, 24 August 2016

सच है





सच और झूठ में सच क्या और झूठ क्या !
इन्द्रियों से महसूस हो सच औ बाकि झूठ
पर इन्द्रियों से परे भी सच झूठ का डेरा है
हाँ! भ्रम का कोई अंत है क्या या शुरुआत
जो आज सच है कल के सपने हो जाते है
वो भ्रम कितना ही गहरे खोदे मानुस मन
माया जन्म स्थली मस्तिष्क है ह्रदय वाहन
वहन करती देह की सात इंद्रियां, भ्रम है
जन्म से भ्रम का साम्राज्य म्रत्यु तक साथ
जो है नहीं उसका भ्रम क्या औ सच क्या
भ्रमित नारद का विलाप संताप भूले क्या !
नदी किनारे, गुरु शिष्य संवाद कौन भूले !
ताउम्र गुजर जाये जब पलक झपकते ही
फिर सत्य सामने आये, सत्य है भ्रम नहीं
उम्र गयी भ्रम ही भ्रम में माया ही माया है
पर आरम्भ औ अंत में, न भ्रम न माया है
बस छूलो एक बार तुम पारसमणि है वहीँ
कुंदन तुम ही हो ये हिसाब मिलेगा सहेजा
उस दिन कहना भ्रम क्या और माया क्या
सच और झूठ में सच क्या और झूठ क्या !
थरथराती देह पांच इन्द्रियों को भी पता है
परंसत्य से ह्रदय दृढमस्तिष्क भी डोला है
क्षणिक मोह झूठ से बहलते कम्पित ह्रदय
सुनो अनहद स्वर दुंदुभि की चोट , सच है

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