अपनी महिमामण्डन में मगन हुआ है
अप्रतिम सौंदर्य तुम्हारा , भूल चुका है
इस ओर तकन में मस्त हुआ वह, जो
सच! उस ओर को देखन भूल चुका है
अप्रतिम सौंदर्य तुम्हारा , भूल चुका है
इस ओर तकन में मस्त हुआ वह, जो
सच! उस ओर को देखन भूल चुका है
पल पल, उस साँस का, गहराते जाना!
थमती साँस, उसका उसे, देखते जाना
उम्मीद के छोर पे, जा बैठे थे तुम जब
शायद पथराती आँख, वो भूल चुका है
तुम्हें! करीने से तहा उसने रख दिया था
ढूंढने पे, आज उसे, वहां वैसे नहीं मिले
हैराँ भी, खंगलने पर तुम उसे नहीं मिले
कहे तुम्हे कुछ भी पर सच भूल चुका है
थमती साँस, उसका उसे, देखते जाना
उम्मीद के छोर पे, जा बैठे थे तुम जब
शायद पथराती आँख, वो भूल चुका है
तुम्हें! करीने से तहा उसने रख दिया था
ढूंढने पे, आज उसे, वहां वैसे नहीं मिले
हैराँ भी, खंगलने पर तुम उसे नहीं मिले
कहे तुम्हे कुछ भी पर सच भूल चुका है
01-01-2018
@ Lata
Note: The person who gets busy in running moments and lost in moments, also forget the beauty of moments
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