Saturday 6 January 2018

लम्हे

कभी खामोश
कभी उदास
कभी हल्के हुए
तो कभी भारी
कभी भीगे हुए 
कभी सूखे
कभी भीड़ में
अकेला करते
कभी अकेले में 
जश्न मानते
पल पल दौड़ते
भागते
चुम्बक से
लम्हे.... !
चिपके हुए
एक के पीछे एक
एक दूसरे को धक्का देते
तो पास  भी  खींचते जाते
कोई ज्यादा दूर हो जाये
तो श्रृंखला ही टूट जाएगी
ऐसी छुक छुक धुआं देती 
उड़ाती डिजिटल-
अदृश्य ट्रेन और
ट्रेन में जुड़े
ट्रेन के डब्बे
जैसे तुम 
"लम्हे....!"
कहाँ  दीखते हो ?
बस कल्पनाओ में
कविताओं के जरिये
खंगाल लेते है तुम्हे
बेशकीमती तसल्ली  
के देख लिया तुम्हे
जान लिया तुम्हे
मान लिया तुम्हे
इतनी दुआ-सलाम
भी गर है तुमसे
काफी है पहचान
तुम्हे जीने के लिए

In respect of  Beautiful Moments, to whom knowing is enough
© Heart's Lines/  © Destiny Poetries
Posted by lata
09-01-2018,
09:15 am 

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