दैदीप्य उम्र से धुंधली गहराई संदेस देती हुई
आज, दो निष्छल आँखे नीरव उदास न लगी
खुली तो हंसदीं ये अक्ष में अदृश को देख के
मूंद के ज्यूँ हृदयकाश में नजरबन्द कर गयी
अनुभव गहराने से दब हुई वे अर्धमुंदी आँखे
तामसी-शून्य छेदती, सूनी, उचाट भी न लगी
क्या देखेंगी ये मृगमरीचि से संसार में जबकि
भीड़ है आच्छादन भीतर उबासियां लेती हुई
कारुण्य भर निरीह हो तकती रहती मौन में
मानो इस भवितव्यता समक्ष लाचार हो गयी
© lata
15-01-2018
16:00pm
आज, दो निष्छल आँखे नीरव उदास न लगी
खुली तो हंसदीं ये अक्ष में अदृश को देख के
मूंद के ज्यूँ हृदयकाश में नजरबन्द कर गयी
अनुभव गहराने से दब हुई वे अर्धमुंदी आँखे
तामसी-शून्य छेदती, सूनी, उचाट भी न लगी
क्या देखेंगी ये मृगमरीचि से संसार में जबकि
भीड़ है आच्छादन भीतर उबासियां लेती हुई
कारुण्य भर निरीह हो तकती रहती मौन में
मानो इस भवितव्यता समक्ष लाचार हो गयी
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15-01-2018
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