Saturday, 23 December 2017

टिमटिमाते नूर


सोचा था! चंद दोस्तों संग गुफ्तगू होगी
कुछ कहूंगा अपनी, कुछ उनकी होगी


चराग था हाथ में के, ढूंढ पहचान लूँगा
दुनियां में मेरा मेरे सिवा दूजा ना मिला


लौटा तेरे दर से रौशन सितारे लिए हुए
मेरे थैले में टिमटिमाते नूर तो अनेक हैं


आँखे-बातें उनकी, मुझे बावला कहे है
लगे है, उन्हें इसमें कुछ भी दिखा नहीं


उलझ देखा ! इसके भीतर जो झांक के
हैरां हूँ मेरे सिवा और को मिले क्यूँ नहीं


अगर दिख जाते, तुम्हे चंद नूर के कतरे 
कौड़ियां बना हमतुम साझा खेल खेलते 


रौशनी की झील में रात उतार नाव को
चांद-झील में संग-संग नौका-सैर करते

It's from A Sufi heart, from heartlines 
sat, 23 dec, 2017, 18:03 pm 
enjoy !! and share your heart too ..
love n regards

No comments:

Post a Comment