Sunday 29 October 2017

आईना

आईने की जिस दिन हम से हार हुई 
जान लीजिये, ये हमारा संसार हमसे-
रूठ जायेगा, सामने खड़ा हर शख्स
इस उभरते अक्स में शामिल मिलेगा


आईना गजब, उसकी अपनी शर्त है 
न भूलने दूंगा तुम्हे तुम्हारा ही वजूद 
जब देखोगे मुझ में डूब के एक बार 
खोया शख्स कुछ बदला सा मिलेगा  

इसआईने को खुद से दूर न कीजिये
के इससा दूसरा हमसफर न मिलेगा
झटक के फेंक इसे चूरचूर किया था
समेटने में जख्मी वहीँ जिस्म मिलेगा

कुछ बूंदें गर छल्कि परवाह न कीजे
गौर से देखिये ! नजरअंदाज न कीजे
टुकड़े टुकड़े टूटे है पर हर टुकड़े में
उभरते सच का आगाज अंत मिलेगा


Sunday 29 oct 2017- 08:54am
©Lata

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