Sunday 15 October 2017

बोलिये के बोलना जरुरी है


बोलिये 
के बोलना जरुरी है
लोगो से नहीं तो पेड़ों पौधों से बोलिये
पाल लीजिये पशु-पक्षी चू-चूं गुटरगूं उनसे कीजिये


बोलिये 
के बोलना जरुरी है
पेड़ न तो मौन ब्रेल की बोलियां बोलिये
हांथो से गर नहीं तो पैरों को भी शामिल कर लीजिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
हाथ पैर भी बेअसर होने लग जाएँ तो
मौन हो बैठिये, और खुद से, ह्रदय से प्रेम से बोलिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
गढ़गढ़ सांयसायं झरझर तड़ितकड़क
मौन प्रकृति के सुर गुह्य, रहस्य क्या कुछ तो सोचिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
नृत्य के घुंघरू बजे संगीत के स्वर सधे 
उँगली को जुबाँ दे, रंग तूलिका से चित्रकारी साधिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
संवेदनशील कवी या लेखक हो, कहिये
पर बोलना बहुत जरुरी है कुछ कीजिये पर बोलिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
बोलियां दबाने से फोड़ा फूटेगा रिसेगा
नासूर न दबाइये, ह्रदय के स्वामी परमेश्वर से बोलिये

बोलिये 
के बोलना जरुरी है
मौन अवसाद या विषाद हो, ध्यान दीजिये 
मौन उभरे चिरचिरन्तन का स-आभार ध्यान कीजिये

बोलिये
के बोलना जरुरी है
न बोलिये जहँ बोली हो धुआंधार बेहिसाब
सुनने की न दरकार हो, वहां प्रेम से प्रणाम कीजिये

Lata
Sunday , 15 Oct , 2017 , 15:32

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