सिखाता है जो स्वयं सीखता भी सतत है
पढ़ाता भी है स्वयं पढता भी शिष्यवत है
पढ़ाता भी है स्वयं पढता भी शिष्यवत है
एक नियम, एक दस्तूर, इकबात है प्यारे
रुलाता जो अक्सर, खुद में रोया बहुत है
रुलाता जो अक्सर, खुद में रोया बहुत है
हैरां हो क्यूँ अचरज तुम्हे हुआ क्यूँकर है
वह धैर्यधारी ही धैर्य धरवाता भी बहुत है
वह धैर्यधारी ही धैर्य धरवाता भी बहुत है
गुरुधर्म, देवधर्म, इन्सां धर्म दुष्कर बहुत
समय की कसौटी पे चढ़के कुंदन बने है
समय की कसौटी पे चढ़के कुंदन बने है
चाक पे चढ़गुजरे है सिद्धअनुभवी पहले
ब्रह्मामुख खुला था, हम पीछे चल पड़े है
दूर नहीं! प्रथम गुरु माँ पिता को देखिये
उनके सिखाये समझने में, बरसों लगे है
उनके सिखाये समझने में, बरसों लगे है
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