Friday, 13 October 2017

ऐसा क्या तुम कहते जाते


ह्रदय में  उद्गार उबलते
कोरा पन्ना भी , हांथो में
मानो लेखनी रूप झाड़ू
हो जादूगर के हांथो में !

हृदयदवात, रक्तस्याही
कलम डुबोता कविमन
इकइक अक्षर शब्द में
शब्द ढले वाक्य में, ओ
वाक्य सक्षम वाकया में

तब भी; इंसान इंसान है
हाथ में थामे कोरे पन्ने पे
अपने अपने स्वभाव भी
उभरते हैं सुर्खस्याही से

लाल सूखा, हुआ काला
कवी की देह, हुई पीली
उसपे मन उसका नीला
कैसी जादूगर तेरी माया

कह-सुन , न कहा सुना
समझ न आया, किस्सा!
लेखनी छूटी  ऊँगली से
सुर्ख स्याही से भरी-पूरी
अथक निरंतर लिखे भी
सीसी लुढ़की कागज पे
तब भी था वो पूरा कोरा 

मौन हुआ, कवी असमर्थ
सर लुढ़का पन्ने के ऊपर
किंचिद न लिख सका वो
ऐसा क्या तुम कहते जाते

FRIDAY 13, 0ct, 08:41
Lata 

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