बंजर हैं बिखरे न देख पलट के दोबारा आस से
टपका जो मोती इन रेत के टीलों में खो जायेगा
मिलों दूर तक रेत उड़ाती है हवा की सांय सांय
इस मीठे पानी को संभलके रखले दिल में प्यारे
बरसों पुरानी जो बुनियाद में लग गयी दीमकें है
उनको जान बूझ के पालने का दिल नहीं करता
मुसाफिर आशियाना उठा तू कहीं और चलपड़
बंजर में रेत के महल बनाने को दिल नहीं करता
दिल में हिलोरे लेता मीठा मानसरोवर अगाध है
और; वहीं छुपी रौशन बेशकीमती खदान भी है
एक लौ जला, तू ले साथ में चल ले निडर होकर
तेरा प्यारा, न जाने कब से वहीँ पे इन्तजार में है
Lata
Sat 14 oct 2017,16:13
No comments:
Post a Comment