कहा तो बहुत है पर बात ये के सुना क्या है
सुना भी बहुत है फिर बात येके धरा क्या है
धरा भी यदि है तो बात येके खंगाला क्या है
खंगाला भी बहुत तो बात ये, निथारा क्या है
निथरा भी बहुत है, बात ये की पिया क्या है
पिया भी बहुत तो बात ये की पचाया क्या है
पचा शक्ति बना तो शक्ति का किया क्या है
कमाया बहुत, बात येकी गवायाँ भी बहुत है
निथरा क्या पिया कितना ओ पचाया क्या है
बात ये भी है के खंगाला क्या है धरा क्या है
सार निःसार कह, यकायक ग़ुम हुआ और;
तब से न मालूम क्यूँ कोल्हू का बैल मौन है
ऐसे में; दूसरा बैल आया उसके पास बोला-
भई तुम तो चढ़े चाक पे डोलते हो बरसों से
कुछ तजुर्बा! कोई किस्सा! कुछ तो सुनाओ
रास्ता हो आसां हमारा भी तरकीब सुझाओ
मुँह से झाग निकलते बैल के घुटने टिक गए
कुछ न बोल पाया क्या बोलता प्राण उड़ गए
दूसरे बैल ने कई को जोड़के समाधी बनायीं
प्रथा है बनी तभी से! उस उस पवित्र स्थल पे
नित्य प्रति झुक घुटने टेकते, सब उसी तरह!
घुटने से झुका प्राण त्यागना मिसाल बन गया
आज कल तो वहां पंक्तिबद्ध भीड़ बेशुमार है
रोजगार श्रद्धा से भरा वो मन्नतो का दरबार है
दूर दूर से जुटते है,नैनो में प्रेम हृदय में आस
श्रद्धा से भाव से वृद्ध युवा बच्चे घुटने टेकते है
प्रार्थना करते, हे उच्चात्मा जब हो घुटने टिके-
ठीक उस क्षण प्राण निकले तो मोक्षी कहाऊं
आज कल तो वहां पंक्तिबद्ध भीड़ बेशुमार है
रोजगार श्रद्धा से भरा वो मन्नतो का दरबार है
सुना भी बहुत है फिर बात येके धरा क्या है
धरा भी यदि है तो बात येके खंगाला क्या है
खंगाला भी बहुत तो बात ये, निथारा क्या है
निथरा भी बहुत है, बात ये की पिया क्या है
पिया भी बहुत तो बात ये की पचाया क्या है
पचा शक्ति बना तो शक्ति का किया क्या है
कमाया बहुत, बात येकी गवायाँ भी बहुत है
निथरा क्या पिया कितना ओ पचाया क्या है
बात ये भी है के खंगाला क्या है धरा क्या है
सार निःसार कह, यकायक ग़ुम हुआ और;
तब से न मालूम क्यूँ कोल्हू का बैल मौन है
ऐसे में; दूसरा बैल आया उसके पास बोला-
भई तुम तो चढ़े चाक पे डोलते हो बरसों से
कुछ तजुर्बा! कोई किस्सा! कुछ तो सुनाओ
रास्ता हो आसां हमारा भी तरकीब सुझाओ
मुँह से झाग निकलते बैल के घुटने टिक गए
कुछ न बोल पाया क्या बोलता प्राण उड़ गए
दूसरे बैल ने कई को जोड़के समाधी बनायीं
प्रथा है बनी तभी से! उस उस पवित्र स्थल पे
नित्य प्रति झुक घुटने टेकते, सब उसी तरह!
घुटने से झुका प्राण त्यागना मिसाल बन गया
आज कल तो वहां पंक्तिबद्ध भीड़ बेशुमार है
रोजगार श्रद्धा से भरा वो मन्नतो का दरबार है
दूर दूर से जुटते है,नैनो में प्रेम हृदय में आस
श्रद्धा से भाव से वृद्ध युवा बच्चे घुटने टेकते है
प्रार्थना करते, हे उच्चात्मा जब हो घुटने टिके-
ठीक उस क्षण प्राण निकले तो मोक्षी कहाऊं
आज कल तो वहां पंक्तिबद्ध भीड़ बेशुमार है
रोजगार श्रद्धा से भरा वो मन्नतो का दरबार है
Author's Note - Dear readers, this poetry is of Hindi acquires the feeling of the right act for soul despite wandering on a hypocritic world in a hypocritic way never takes away to any of you on right desired direction. especially in soul term, know the do n don't pros and cons mindfully. *mindfully means a mind who is in control over conscious. enjoy reading © Lata Tuesday 29/08/2017, 08:54 am
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