अनहद का प्रिय-गीत , गाना चाहता हूँ
मनके मन के तुझसे जोड़ना चाहता हूँ
उड़न अधिक, समय और शक्ति कम
उसी शक्ति से तुझ को छूना चाहता हूँ
बिजलियों की गड़गड़ाहट से लरजता
तुझ से उठती हवाओं से घबराता हूँ
कंपकंपाता टिमटिमाता दीप जो मेरा
ह्रदय.. ह्रदय प्रेम से, बांधना चाहता हूँ
उलझा हूँ, नुकीले कंटको से घायल हूँ
पाषणो से टकरा मरु में भटकता हूँ मैं
दूर उस अमृतकलश से व्याकुल हुआ
दुर्गम पे संभल संभल चलना चाहता हूँ
झोंका पवन का आता है जो द्वारे से तेरे
स्पर्श कर मानो जीवन का नवराग देता
पथ बीहड़ भूले कंटक का भी दर्द नहीं
विह्वल था अब तुझमे समाना चाहता हूँ
अंधकार दुर्गम जंगल बिजली कड़कती
न मरू-थल, न समुद्री चक्रवात दिखता
हवा में बवंडर का शोर, जोर भी नहीं है
दिव्य सीमाएं तेरी इनमे रहना चाहता हूँ
बिवाईं की वेदना लहू का रिसाव निरंतर
खुली पलकेँ, वर्षों जागा हुआ ह्रदय मेरा
विचलन तड़पन जल से पूरित ये नैन दो
तुम्हारी गोद में छुप सो जाना चाहता हूँ
पाया अनुपम दीप प्रकाशित गुणतत्व से
प्राणो की चिरज्वाला से इसे जलाया है
अकंप रहे, विचलित न हो ओजवान बने
पंचतत्व को मित्रसाक्षी बनाना चाहता हूँ
पलक मूंदने को है सांस रुकने को है बस
ह्रदय की धड़कन तेरी ताल में मिलने को
श्यामा! बेचैनियों को थोड़ा सहारा और दे
अनहद गीत भरी बांसुरी सुनना चाहता हूँ
ॐ
नमन
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