Tuesday, 22 August 2017

बता ऐ दोस्त!

ऐ दोस्त...

लोग कहते है पत्थर शांत झील में न मार लहरे उठती रहेंगी
आसपास की डोलती हवाएँ इस झील में कंकड़ फेंक देती है
नादाँ हवा को रोके कैसे, ए दोस्त !


रक्त में शामिल रक्तबीज से निपटने का तरीका दे, ए दोस्त!
विध्वंसक तो काटने से दुगना बढ़ता,मरता पुनः जन्म लेता है
कोई तो तरकीब सुझा ! ए दोस्त !


देवी ने तो रास्ता खोज निकाला रक्त-बूँद भी धरती पे न गिरे
मारती गयी जूं रक्तबीज को रक्त कटोरे में इकठा होता गया
इसका कुछ समझे मर्म ! ऐ दोस्त !


सिर्फ देवी की बात नहीं जयद्रथ का सर अवगुणो का पुलिंदा
यूँ ही काटा था अर्जुन ने स्वयोग और देव कृष्ण के सहयोग से
अस्मा में फ़ूट मिटा बम सा, ऐ दोस्त !


बीज का रक्त गर्भ में आते कारन बनेगी प्रकृति पुनःजन्म का
रक्तबीज समाप्त हो जड़ से,लहू एक बूँद भी धरा पे गिरे नहीं
कोई ऐसा तीर तू भी चला , ए दोस्त ! 

धरती के गर्भ में बीज गिरा जन्मेगा, जन्मदात्री जो ठहरी प्रेमिल
शक्तिशाली अस्मा अपने में समेट व्योम-घेरे में कैद कर लेता है
इन सब को यूँ ही खींच ले, ऐ दोस्त !



© Lata 23/08/2017 10am

Note : विचार कुछ ऐसा , की भलाई और बुराई में बंटे गुण , एक दूसरे की बात सुनते है पर समझते अपनी ही समझ से , लाख एक पक्ष प्रयास करले दूसरे की समझ में अपनी तरीके से वो बात प्रवेश करेगी। इसका क्या उपाय है ? और ये एक दो की बात नहीं , एक और दो से शुरू हो पूरे मानव समाज पे छायी है , छाते जैसी , इसी में धर्म सप्रदाय देश , इंसानियत तक शामिल है। अब बोलो क्या किया जाये !
कुछ ऐसा ही ख्याल , जब एक सम्प्रदाय दूसरे के धार्मिक नियम में दखल दे देता है , इंसानियतवश। बहुतों का भला भी होता है , देवत्व की स्थापना होती है। पर इसका ही एक दूसरा पहलु भी है , जो गुण घायल है वो अपने तरीके से प्रतिउत्तर भी देगा , क्यूंकि जो घायल है वो भी शक्तिशाली है। फिर देव और दानव के बलवान उत्तर प्रतिउत्तर का लम्बा काल, होती है इंसानियत शर्मिंदा और ईश्वर फिर अपने पौरुष से संतुलन में रत अवतार लेते ही है। युगांत इसी का नाम है।

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