'वो' मूरत हमने खड़ी की 'तो' इमारत तुमने भी
'ये' तरीका हमने ईजाद किया तो 'वो' तुमने भी
'इस' रास्ते हम चले तो 'उस' रास्ते तुम भी चले
बुद्धिमान और साक्ष्यदर्शी पुरुष आस पास गढ़
हमदोनों ने निजता के लिए दो पताका गाड़ दी
हम अपने पाटे पे बैठे वो अपनी खटिया पे बैठे
हमने छत्तीस की माला फेरी तुमने तिरसठ की
हमने हुक्का गुड़गुड़ाया तुमने चिलम सुलगायी
आदत! हम दोनों पान चबा मुँह छुपा के थूकते
हम दोनो अफलातूनी एक दूसरे को नहीं सहते
सदियों से स्वर्ग के रास्ते, युद्धस्तर पे हम दोनों
हम दोनों थे अलगअलग रहते भी थे जुदा जुदा
बचपन पे खेले साथ बढ़ते,सुख दुःख देखे साथ
देखो सब कुछ समाप्त हुआ खाली हम तुम हैं
घनी सांझ की बेला में बैठे हमतुम थक हार के
गहरी सांस ले मुस्काये, एक दूजे को निहार के
मैंने ही तुम्हारे बैलो को खिला बीमार किया था
हाँ ! मैंने भी तुम्हारी बकरी चुराई थी उस रोज
मैंने तुम्हारे खेत मेंआग लगायी थी मालूम क्या
मैंने दुश्मन से मिल तुम्हे मारने तक की सोची
अच्छा ! (आश्चर्य),अफ़सोस गहरी श्वांस (खेद)
देखो तो आज हमें किस हाल में कर छोड़ गए
वो सूरज निकलने को, गुस्सा थूक लग जा गले
मिलजुल खेत में एकबार फिर जुताई शुरू करें
बाद में कुछ पैसे आएंगे, फिर बैल भी खरीदेंगे
खेती फिरअच्छी होगी दोबारा खेत लहलहाएंगे
© 23-08-2017,07;05am Lata
Note-the poetry is written on basis of two different minds set of close neighbours friends who are actually friends but jealous many times. the problem in script blame game continues... pahle ek dusre ko ..... ab teesre ko , Dear neighbours friends ! not fair! some thing problem in mental tuning and mutual understanding and acceptance, so again the friend will face the same problem in their Good days and this is called character. though Ashtanga-yog finds 8 principles as 8 ways, on walk characters also possible change . but need timeless practices. by the way; good wishes for strong friendship for good cause.
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