Thursday, 1 February 2018

जुबैदा सोच में हूँ !


ऐसी ना-इंसाफी ?
वो भी अपने प्रति
क्यों जुबैदा ?
ऐसा उपेक्षा का भाव ....
इस मिले दिव्य जीवन के प्रति
मंदिर सी देह के प्रति अकर्तव्य का भाव
आखिर संतुलन क्यों खोया तुमने
कौन से अपमान की ज्वाला में जल गयी
द्वेष का जल कब  सर 
 के ऊपर हो गया
जो बाढ़ की उफनती नदी बन गहरे आक्रोश में घिर गयी
अब विष उगलती नागिन सी क्यों छटपटाती  हो 
क्यों उसी शख्स को सर्पदंश दे कर भी चैन न पाती  हो 
न सोचा ! क्या करोगी तुम इतनी सहानुभूति बटोर कर
इन उथली सहानुभूतियों से तो तुम्हारा इलाज न हो सकेगा
मानसिक असंतुलन से विक्षिप्त क्यों हो गयी
इलाज तो तुम्हारा फिर भी वो ही शख्स करेगा
जो आता है हर बार तुमसे मिलने को
जो तुम्हारे थप्पड़ खाता है
और कुछ निश्चित पैसे अस्पताल में भर
थके कदमो से जो लौट जाता है .... दोबारा आने के लिए
जिसने दवा भरण पोषण की जिम्मेदारी
तुम्हारे जीवन की जिम्मेदारी कसम की तरह उठा रख्ही है
और जिसको हर बार डस, तुम शांत होती हो
कुछ समय के लिए मौन में खोती हो
इतना विष कैसे जन्मता है ? 
धर्मो की चाक पे चढ़ी हो , पर सभी 
धर्मो से  प्रथम , प्रकर्ति प्रदत्त जिम्मेदारी लिए स्त्री हो तुम !
कैसे तुम सहती हो इसकी असह्य भीषण ज्वाला
तपन घाव तुम्हारा जिसको नेह अमृत भी कम न कर पाता
अपना मानसिक संतुलन खो कर ये क्या किया
अपने घर में न हो ....तुम हो पागलखाने में
अनजान वेतनभोगी कर्ताओं के बीच तुम्हारा रहना
जीवन तो तुम्हारा ही था न !
अपने जीवन का अधिकार तुमने क्यों औरों को सौंप दिया
समय रहते क्यों कर तुम ऐसा न सोच पायी जुबैदा !

🙏
सन्दर्भ : एक स्त्री "जुबैदा "अपने निजता के अपमान से जल के विक्षिप्त हुई और सब भुला बैठी , अपना जीवन प्रेम कर्त्तव्य मानसिक असंतुलन ने सब नष्ट करदिये। तो पागल होने से पहले जुबैदा ये जरूर सोचना ! अपनी निजता की शक्ति संजोना और कमजोर बन के नहीं बल्कि साहस से जीवन जीना।

1 comment:

  1. The Poetry Original from Nidhi Ji
    जुबैदा पिछले एक साल से पागलखाने में भर्ती है
    अन्यमनस्क
    सब कुछ भूली सी
    बिखरे रूखे बाल
    नत सर
    बेवज़ह हँसना या
    कभी कभार रो लेना
    आँखो में ठहरा गहरा दर्द
    और सहमी धूल भरी काया..

    कल उसका पति मिलने आया
    जुबैदा दो उपचारिकाओं के साथ बाहर आई
    पहचानने का प्रयास किया
    एक क्षण को मुस्कुराई
    और फिर अचानक
    झापड़ पे झापड़
    पति को रसीद किये..

    पति बहुत चिल्लाया
    शर्म नही आती मरद को मारते
    कुछ ही देर में जुबैदा शांत हो गई
    उपचारिकाएँ पकड़ कर उसे अंदर ले गई..

    मैंने उपचारिकाओं से पूछा
    तुमनेँ पकड़ा क्यो नही जुबैदा को
    कितनी ज़ोर से मारा उसने अपने पति को..

    उपचारिकाओं के बताया
    स्थिति नियंत्रण में रहे
    इसकी निगरानी हम रखते हैं
    बाकी ये भी जुबैदा के इलाज का एक हिस्सा है!!

    ~निधि~

    When she wrote :
    निधि सक्सेना लता जी ये एक सच्ची घटना थी जो मेरे बेटे ने मुझे सुनाई जो डॉक्टरी पढ़ रहा...
    मुझे लगा अतिशय ज्यात्तियाँ की होंगी उस पर जो वो पागल हुई..और विक्षिप्त होना या न होना उस के बस में तो न होगा..
    जानबूझ कर तो कोई पागल नही होता न..
    और सरकारी पागलखाने में कुछ ख़र्चा नही लगता...
    साल में एक दो बार मिलने आ जाना कोई अहसान भी नही

    *from her Inspiration i made poetry who may able to serve primary solution as courage (if anyone in need)

    In response: i get pulse Immediate after reading one poetry by nidhi saxena ji ! it's very true sad story, but still true in the human world, i understand, bowing and pay respect ... this is her skillful writing who gives me a thought.

    So that the world is a Bhavsagar , full of sorrow, but The spiritual system is an Only healer and life-giver (as per requirement) so that automatically get to settle on self-nailing, where all living ladder available.

    And a very Important reminder not for respected lady 'Jubaida' its for entire womanhood, and not an only woman it is for all who are a victim and lose the balance of either emotions or mind.

    This is to them who forget yourself love respect. and also gratitude to pay lord whatever they have yet, this is pure blessings...

    because if we come on eligibility and authority, its none and only breaths who are the most available resource to survive and to struggle with body temple. ( this is remedy 'before' fall)

    Thanks for giving me a new way to present solution ..<3

    आपके एक एक शब्द में गहरी सोच है। बिन बुलाये मेहमान सी कुछ विशेष परिस्थिति, उनमे उलझे ताने बाने जीवन को कठिन संघर्षपूर्ण बनाते है ....

    संभवतः हर बार समाधान नहीं मिलता , सब कुछ ईश्वर के अनुग्रह से संभव है यहाँ तक सहारे भी। संभवतः सहारे समय पे नहीं मिले तो ही अनहोनी घटती है। और कारन सिर्फ एक - अपना मन मस्तिष्क परिस्थतियों या किसी कारन दुर्बल पड़ जाना।

    बिलकुल देह की तरह इम्युन सिस्टम कमजोर हुआ तोहि बीमारी ने घेरा , और बीमार को अस्पताल या डॉक्टर के पास जाना ही है , ऐसी ही अवस्था मन की है। जिसका इलाज मन / मस्तिष्क के अस्पताल और डॉक्टर करते है।

    ये ही डॉक्टर निवारण / बचाव / रोक-थाम का सुझाव भी देते है , देह में दादी के घरेलु नुस्खे कारगर , और मन पे अध्यात्म, दिव्य-मित्र सहयोगी , और अपनी मौलिक रुचिया सहयोग करती है।

    पर ये भी की होनी से मिली काई में चलना भी है कोई उपाय नहीं , बचाव के बाद भी रपटना है और गिरना भी है तो क्या कर सकते है , गिर पड़े तो हर गंगे। बस गिरते समय ख्याल रखे की शायद चोट कम आये , और तब भी चोट गहरी है तो इलाज तो उपाय है। संभवतः चोट इतनी गहरी के इलाज भी काम न करे तो , जो है सो है , अपने जीवन से बड़ा और प्यारा और महत्वपूर्ण क्या होगा।

    संभवतः तमाम कर्तव्यों को करते हुए भी आत्मा की यात्रा बहुत निजी है।

    💐🕉️💞


    love n respect.

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