कोई तो बात है यूँ ही चार पन्नो से चार युग नहीं बीते
तुम्हारे किये को कोई तो है जो बारबार मिटा देता है
हर बार भरकस जतन से जिन उंचाईयों को छूते हो
सागर में उठी एक लहर सा कोई उन्हें मिटा देता है
और गिर पड़ते हो लाचार, जमीं पे रेंगने को फिर से
मनोबल टूटता नहीं फिर नई चढ़ाई शुरू करदेते हो
बाकि सब तो ठीक है पर पिछला क्यों भूल जाते हो
भूल ही जाते हो तो चलो कुछ ऐसे याद कर के देखो
कभी गीली बालू पे, गहरी लकीर से बने गहरे किस्से
खींचके देखो कितना भी कैसा भी सच! तुम जो चाहो
आगे लिखते जाओ, पीछे खुद ब खुद मिटता जाता है
सैकड़ों अक्षर खुदे होंगे पर किनारा कोरे का कोरा है
© लता
१० / ०२ / २०१८
२१:२३ रात्रि
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