Saturday 10 February 2018

गीली बालू पे खींची लकीर से चार युग


कोई तो बात है यूँ ही चार पन्नो से चार युग नहीं बीते 
तुम्हारे किये को कोई तो है जो बारबार मिटा देता है 

हर बार भरकस जतन से जिन उंचाईयों को छूते हो 
सागर में उठी एक लहर सा कोई उन्हें मिटा देता है 

और गिर पड़ते हो लाचार, जमीं पे रेंगने को फिर से 
मनोबल टूटता नहीं फिर नई चढ़ाई शुरू करदेते हो 

बाकि सब तो ठीक है पर पिछला क्यों भूल जाते हो 
भूल ही जाते हो तो चलो कुछ ऐसे याद कर के देखो 

कभी गीली बालू पे, गहरी लकीर से बने गहरे किस्से 
खींचके देखो कितना भी कैसा भी सच! तुम जो चाहो 

आगे लिखते जाओ, पीछे खुद ब खुद मिटता जाता है
सैकड़ों अक्षर खुदे होंगे पर किनारा कोरे का कोरा है


© लता 
१० / ०२ / २०१८ 
२१:२३ रात्रि 

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