चलता पंखा, फ़ड़फ़ड़ पन्ने
उसके प्रिय उपन्यास जैसी
उसकी आँख खोईअर्धनम
गहरी खोज में उपलब्धि में
अर्धखुली और अर्धमूँदी भी
उसकी आँख खोईअर्धनम
गहरी खोज में उपलब्धि में
अर्धखुली और अर्धमूँदी भी
'मोती' थे, सत्तर की उम्र के
गत पचास में चालीस स्पष्ट
खोय क्या क्या पाए जग में
ख़्वाब सा था जो बीत गया
ख़्वाब ही तो है जो आएगा
पिछला गया,असमंजस में
अगला भी यूँह बह जायेगा
इस पल में खड़े, मुड़ देखा
क्यूँ कहे! न लोग हैं न साथ
समझ न आये महत सौंदर्य
रूपकलेवर छद्मी भीड़ का
गत पचास में चालीस स्पष्ट
खोय क्या क्या पाए जग में
ख़्वाब सा था जो बीत गया
ख़्वाब ही तो है जो आएगा
पिछला गया,असमंजस में
अगला भी यूँह बह जायेगा
इस पल में खड़े, मुड़ देखा
क्यूँ कहे! न लोग हैं न साथ
समझ न आये महत सौंदर्य
रूपकलेवर छद्मी भीड़ का
व्यथित मन ने सहसा देखा
अतल थाह में हीरे की रेख
भविष्य में बहते समय-क्षण
इस क्षण-सम वे जर्जर न थे
अथक प्रयास अनेक स्थति
स्वयं से अपरिचित रहने से
न समझे जानेसे बस हैरां थे
अतल थाह में हीरे की रेख
भविष्य में बहते समय-क्षण
इस क्षण-सम वे जर्जर न थे
अथक प्रयास अनेक स्थति
स्वयं से अपरिचित रहने से
न समझे जानेसे बस हैरां थे
चाहते देख लें बहाव उसका
जानें ! अनंत फ़ैलाव उसका
जान लें जैसा पीछे बह गया
वैसे ही आगे भी बह जायेगा
हाथ में; आज भी न आयेगा
सिवाय संतुष्टि चुटकी समझ
किन्तु असंतुष्टि से पूरित हम
देखे हताशा से भूत की ओर
भविष्य कम्पित उम्मीद साथ
जानें ! अनंत फ़ैलाव उसका
जान लें जैसा पीछे बह गया
वैसे ही आगे भी बह जायेगा
हाथ में; आज भी न आयेगा
सिवाय संतुष्टि चुटकी समझ
किन्तु असंतुष्टि से पूरित हम
देखे हताशा से भूत की ओर
भविष्य कम्पित उम्मीद साथ
जबके सबही थे उसके साथ
वैसे ही जैसे आज संग-साथ
आगे भी होंगे सभी ऐसे साथ
क्यूँ बेकलव्यथित मन भटके
पर्त दर पर्त मन-रहस्य खुले
वृक्ष केअनेक सूखे पत्ते झड़े
खुली झोळी में गिर थिर हुए
वैसे ही जैसे आज संग-साथ
आगे भी होंगे सभी ऐसे साथ
क्यूँ बेकलव्यथित मन भटके
पर्त दर पर्त मन-रहस्य खुले
वृक्ष केअनेक सूखे पत्ते झड़े
खुली झोळी में गिर थिर हुए
छत पे चलता पंखा, हवा से-
उड़ते फड़फड़ाते सभी पन्ने,
अर्धमूँदे..अर्द्धनम..अर्धखुले-
इतिश्री कहते प्रेम से बंद हुए
उड़ते फड़फड़ाते सभी पन्ने,
अर्धमूँदे..अर्द्धनम..अर्धखुले-
इतिश्री कहते प्रेम से बंद हुए
© Lata
20/02/2018
10:14am
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