Tuesday 13 February 2018

सप्तद्वीप-सप्त पर्वत-नाविक की खोज-नाविक का जहाज



ज्यूँ ; सागर की असीम गहराई में लेटे पड़े हुए हैं
जलसमाधिस्त 
काई सने सप्तद्वीप के उभरे शीर्ष 
उभरे शीर्ष युक्त पर्वत, नीचे रहता सप्तद्वीप सार
इन कंदराओं पे घर किया जलचर जीवजंतुओं ने
जीवननिर्वहन को उन्हें सुरक्षित ठिकाने जो मिले

पर्वत शिखर जलीय हलचल के कारन स्पष्ट और 
गहराई के कारन सुरक्षित भी किन्तु इसी कारण
कहीं उत्तंग, हुआ धूमिल कहीं, कहीं पे अदृश् है


शब्द असमर्थ,पर्वत की इस गहराई को कहने में
अथाह सागर गहरा भी थिर भी हिलोरे लेता हुआ
ऊपर ऊपर गंभीर क्रीड़ामग्न लहरें दिखीं विशाल
लहरों पे तैरता डोलता रुक-रुक बहे इक जहाज

बिंदु छूने की कोशिश में है इक नाविक बारम्बार
किन्तु बिन छुए पार करता, दुबारा लौटने के लिए
ऐसा लगता मानो शिखरबिंदु-जहाज के मेल बीच
अवधान बना जीवनदायी जल, परिचित जीव जंतु
संग-संग, प्रबल अवरोध डालती युग से पड़ी काई

सहायक भी हैं बाधक भी भ्रम देते सहबन्धु बांधव 
बेडा किसी का बिंदु स्पर्श कर पार हो आगे बढ़ता
कभी कोई तो शीर्ष से छूते, रसातल में समा जाता
ॐ मैं, मेरा योगबल प्रबल,समक्ष प्रबल अवरोध थे 
शक्तिहीन न कोई ,अद्भुत देव-शक्ति सम्पन सब  
सभी शक्तिवान सभी ओजवान, सभी स्रोत से जुड़े
जल का कण तरंग लिए या नाविक आत्मसंग लिए

था नाविक का जहाज तिरता चंचल लहरों के ऊपर
नीचे सागर का अथाह गहरा जल हिलोरें लेता हुआ
ऐसे जल के नीचे काई से सने सप्तबिंदु पर्वतशिखर
इनके नीचे छिपे अदृश् सप्तद्वीप,है खोज में नाविक 

© Lata 
On precious day of Mahashivratri  dedicated to all meditative and wise yogi friends 
14/02/2018

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