जब मैं अपना दिन सुबह शुरू करूँ
बिन कारन की मुस्कराहट, साथ हो
बिन कारन की मुस्कराहट, साथ हो
और मेज पे कैफीन से भरी गर्म चाय
मेरे हाथ में पैनी कर्मलेखनी तैयार हो
मेरे हाथ में पैनी कर्मलेखनी तैयार हो
बिखरा बिन सिलवट का सफ़ेद पन्ना
जहाँ मात्र चंद लाईने सीधी खिंची हों
जहाँ मात्र चंद लाईने सीधी खिंची हों
मेरी सुविधा के लिए अक्षर फैले नहीं
करीने से लिख पाऊं, इस कागज़ पे
करीने से लिख पाऊं, इस कागज़ पे
लिखती जाऊं अथक भाव जो उपजे
संग संग मिटने की सुविधा मिली हो
संग संग मिटने की सुविधा मिली हो
दिन हो पूर्ण तबजब सांध्य से रात्रि हो
मेरे लाख लिखने पर भी, कोरा ही हो
मेरे लाख लिखने पर भी, कोरा ही हो
स्निग्ध भोर से इस कोपल का उत्स हो
पुष्प ढल्के सुगंध फैलाता अवसान हो
पुष्प ढल्के सुगंध फैलाता अवसान हो
आयु पूर्ण हो फूल ढल्के, परिणति हो
तरंग हो सुगंध भी न ठहरे,अदृश्य हो
तरंग हो सुगंध भी न ठहरे,अदृश्य हो
कवमन कुछ ऐसा हो दिन से रात में-
बहता, पूरा करता, काल का घेरा हो
बहता, पूरा करता, काल का घेरा हो
~Lata
blog created 04:54 am 06/02/2018
written- Monday -5/02/2018, 16:53pm
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