Thursday, 29 January 2015

वो चतुर



कुशल तैराक सा वो चतुर  बनता है 
तैरना उसका  निरंतर जारी रहता है 
कभी पोखर, कभी झील कभी नदी 
कभी सागर लहरों पे सवार रहता है 

वो धावक कभी स्थिर दीप लौ जैसा 
अंतर्मन में सिमटके चुपके बैठता है 
जबतक ताकत उसके जवां शरीर में 
स्वास्थ्य ; मन को प्रसन्नता देता है

उड़ता भिनभिनता मधुमक्खी सा वो 
आनन्द  के पीछे तितली सा उड़ता है 
जब तक स्वस्थ्य  मस्तिष्क उसका
जीव अभीप्सा से कब हार मानता है

संतसुर गंगा



धागे के सिरे की बात करने पे
वे चादर को तार तार करते है ,
क्या खूब इंसानो की बस्ती है!
वे नासमझी समझ के करते है

धर्मी  ठेकेदार नहीं यहाँ रहता
जो गुरु चेलों की बात करते है
शौक नहीं आसमां झुकाने का
खुद से अपनी ही बात करते है

चाँद-तारें-सूरज  यार बन बैठे
कायनात खुद में समेटे बैठे है
उसके साथ है याराना हमारा !
संतसुर गंगा में स्नान करते है

उम्र की उभरी सिलवट


रेगिस्तान की उड़ती रेत पे उभरे सिलवट के निशां
या हो समंदर पे टिके पत्थर पे गहरे में तैरती काई

देखने वाले पारखी थमी हुई खामोश चट्टानों में भी
सिमटी हुई उम्र की सिलवटों के निशां देख लेते है

या हल्क़े नीले आस्मां के जिस्म पे तैरते घने बादल
घनघोर घनी पर्तो में ही उम्र की गहराइयाँ समेटे है

दरख़्त की छाल पे उम्र की लकीरें खुदी नहीं होतीं 
कण कण का ठहरा मन, इक उम्र ए दौराँ समेटे है

फकत अंग-वस्त्र ही अपनी उम्र का बयां नहीं करते
रूह के पैरहन उम्र ए सिलवट के निशां लिए बैठे है

तमाम रूहें ही नहीं इस सिलवट में लिपट उलझी है
खुदा खुद वख्ते-उम्र की सिलवट में लिपट उलझा है


Om Pranam

Wednesday, 28 January 2015

जलकण अभिनंदन




बीजरूप जलकण अभिनंदन
कण-कण स्पंदन अभिनंदन

नन्हा जलकण विस्तृत होता 
बूँद से भाप बन सघन बादल 

सांवल श्याम नीरद कहलाया
छा गया आसमान पे घनघोर

बरस बंजर को हरित बनाया 
समा धरती की शिरा में दौडा 

वसुधा पे प्राण नदी कहलाया 
तो नसों में बह रहा रक्त बन

विस्तार से संकुचन को बढ़ता
शिरा से बह गिरा पुनः धरा पे 

बूँद से वह जलकण आज पुनः 
भू पे गिर; बीजरूप होने आया

Sunday, 25 January 2015

द्वैत अद्वैत


द्वैत अद्वैत तंत्रजाल के निगहबानो

मैं जहाँ हूँ, वहां से मैं बंटा नहीं, एक हूँ 


मत बांटो मुझे रक्त रंजित समूहों में 


उड़ाओगे "मेरे" चीथड़े .."मेरे" नाम पे

मिटाओगे अपना ही खोखलअस्तित्व



मतिभ्रष्ट हुए नष्ट विनष्ट अस्तित्व


खेल को खेल के,मुझमे समाँ जाओगे


शुरूसे मुझे तुमको फिर गढ़ना पड़ेगा


मैं ही था, मै ही हूँ,अंत में मैं ही बचूंगा


अकेला हूँ,अखंड, अविनाशी, सुरक्षित



जिन्होंने जाना कहा ; हर-बार बार बार


प्रेम हो तुम,नफरत गहरी अज्ञानता है


सत्य प्रकाश के पास "द्वैत" नहीं होता


क्या बुद्ध क्या जीसस क्या कृष्णराम


क्या गीता, क्या बाइबिल, क्या कुरान



क्या रूमी, कबीर, मीरा और मोहम्मद


उस तल से कहता हूँ,संदेस सुन ध्यानी


मनुष्य से कहलाता मनुष्यता के लिए


" मैं " मनुष् कहता हूँ "तुम प्रेम ही हो "


प्रेम से प्रेम के लिए स्व प्रेममय रूप हो



लहरों में तरंग" मैं " फूलों में सुगंध " मैं "


संगीत में स्वर हूँ मैं चित्र में रंग " मैं " हूँ


डमरू का नाद मैं ब्रह्म का रूप " मैं "  हूँ


ज्ञानी की उठी ऊँगली के इशारे में "मैं" हूँ


शास्त्र के सफ़ेद पन्ने की कालिख में नहीं


प्रेमीयुग्म  के ह्रदय की धड़कन में "मैं" हूँ

Thursday, 22 January 2015

आत्म-अनुभव : जीवन के लिए

ओम की सत्ता 

when One Understand Death actually he  start understand to life .. and this is  complete  circle of wisdom .

 
RIP to all departed  Soul (s) Boarded on air asia flight  _()_,pic  of recovery of bodies over the Indonesian ocean  

आज क्या हुआ, जो शब्द निःशब्द हो गए !
सुना कहा ज्ञान बारबार आज ह्रदय मौन है 
देखा धनसंपदा का अद्भुत खेल लाखो दिए 
नहीं पता था मृत्यु खरीद रहे कतार में लगे 
हजारो फीट ऊपर घंटी बजी आखिरी पल थे 

अगले पल में हम विशाल लहरों के अंदर थे
और उस अंतिम पीड़ा को समझ भी न पाये 
देखा तैरते  सुखी - गीली लकड़ी सी देह को 
देह से अलग घूमने लगे ,प्रपंच तमाशे सारे 
वो घमंड वो तानाशाही राजसी तौर मिलाप 

याद आया प्रेम से सराबोर उपवन था मेरा 
देखा  रोते बिलखते जो थे ख़ास मेरे अपने 
सपना वो लग रहा देह विलग निष्क्रिय मै 
दुआ! काश समंदर में तैरती देह में जा बसूं 
फिर जीवन पाऊँ वो मन का सब जी जाऊं 

पर  कैसे ? अब पश्चाताप, खुद पे आक्रोश
क्यूँ  खुद  को नहीं जी पाया, शिकवा भी ये 
खुदको समझ पाया न खुदसे प्रेम करपाया 
खड़ा  भरे नैनों में अनदेखे जल-कण  लिए 
लहरों पे हिलोरे लेता शरीर और मैं अतृप्त 

Om 

we are lucky, if after knock we may able to do love life , love self and all whatever we have in mind we may able to live .. with in life .. amen !

Tuesday, 20 January 2015

क़यामत का दिन वो (Haiku)



था क़यामत का दिन वो 

जिस दिन हुआ रूबरू खुद से 


बाद उसके मैं ख़ुदा 

खुद से हो खुदी से जुड़ गया