घूँट घूँट थोड़ा थोड़ा अमृत रोज पीते
तिल तिल, पल पल, थोड़ा थोड़ा जीते
हजार रश्मियों में महज एक के लिए
रात्रि लौ जला भोर तपस दर्शन करते
एक दिन ठान ली , सूरज को पाने की
उसने शिवम के हौसले आज़माने की
उधार के पंख थे हौसले भी चुराए हुए
पल में हुए राख़ तपस के अग्न्यास्त्र से
उसने हर बार पटका सोंधी माटी पर
चारोखाने चित्त था स्वाद सोंधा मुँह में
श्वांसे तेज अस्थिर चहुँ कालिमा सघन
बंद होते डूबते नैन से नजर पड़ी उस
नन्हे कण पे,करीब से पर्वत ही लगता
श्रेष्ठ गुरु समक्ष छद्मी साहस क्षुद्र हुआ
सहसा रश्मि उस के अन्तः से निकल
उठ नभ को सीधे , मिली जा सूरज से
क्षण देरी बिन बन बैठी सूरज का अंश
क्या बनना उसका , जो जुड़ा अक्षुण्ण
उस धनी के पास लेट, थी श्वांस मद्धम
लय पे गाती नब्ज ज्यूँ राग अनहद का
मानो आज उसने प्रेम से, पुकारा मुझे
सोचता हूँ इशारा ! हाँ, मिल गया मुझे
Ⓒ Lata
9 July 2017