Monday 19 June 2017

'कृतिरंग' इक संग

हर ताल में छिपी लय हर लय में छिपी धुन
धुन में छिपी सरगम,सरगम में बोलअमोल
हर बोल छिपा जिव्हा पे, दो अधरों के बीच
दो अधर बने वाद्य, लिए ताल लय सुर बोल
अधर मौन कवि के, है मुखर छंद स्वर संग
देह में थिरकन नर्तक के,श्वांस योग का नर्त
हर कृति मे सात रंग हर रंग में कृति है पूर्ण
कलाकार तूलिका में ज्यूँ 'कृतिरंग' इक संग
ब्रह्मानंद आदिदेव-देवी हंसयुग्म हो मनस में
सत्चितानंद रूप में नितप्रति आवें रमन करे
मान सरु ! तू पुष्प दीप धुप हृदय में बसा के
मंदिर वहीँ पे बना ले, तीरथ उसे ही जान ले
फिर परम-प्रेम-ग्रन्थ पढ़ो, सहेजो, खर्चो, या-
चाह देख जान पा जियो, जैसी मर्जी तुम्हारी

 © Lata 
19-06-2017

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