साँचा अजूबा आने बाने कसे दौड़ते धागे
कैसी कैसी रंग रंगीली चादरें बुनता है तू
हरबार नए आकार गढ़ रंग भरता इसमे
ओ रे जुलाहे, थकता नहीं कभी क्या तू ?
हरबार नए आकार गढ़ रंग भरता इसमे
ओ रे जुलाहे, थकता नहीं कभी क्या तू ?
एकछत्र फैली चादर आस्मानी कभी हुई -
स्याह, टिमटिम तारे जिसपे टाँकता है तू
स्याह, टिमटिम तारे जिसपे टाँकता है तू
तेरी ऊँगल की पोर में रहे बला का जादू
जिसपे कायनात को थईया कराता है तू
जिसपे कायनात को थईया कराता है तू
धन की , कर्म की , भाग्य की , जन्म की
मजहब की, समाज की, रीतीरिवाजों की
इसकी उसकी मेरी तेरी देह की देश की
दे के पहचान, सबको चादरें उढाता है तू
मजहब की, समाज की, रीतीरिवाजों की
इसकी उसकी मेरी तेरी देह की देश की
दे के पहचान, सबको चादरें उढाता है तू
भाव की भी बेशकीमती चादर तूने बनाई
लम्बाई चौड़ाई जिसकी क्या खूब निखारी
अपनी चादर में संतुष्ट, आचरण सहज है
कोशिश कसमस कृतिम, जता देता है तू
कोशिश कसमस कृतिम, जता देता है तू
'उत्ते पैर पसारिये जित्ती चादर होये' कहे
कैसे कैसे इशारे में, समझाता जाता है तू
उस 'एक' को इत्ते में, कैसे सहेजता है तू
न मालूम कब से बुनावट में है जुलाहे तू
अहं से जुगत से बुनी दोबारा तेरी चादर
न जाने कौन रंग आकार उभर के आये
मैली चादर ओढ़े उपाय को इतुत भटकूं
ज्यूँ की त्यूं सौंप दूँ, बिधि बोल जुलाहे तू
अहं से जुगत से बुनी दोबारा तेरी चादर
न जाने कौन रंग आकार उभर के आये
मैली चादर ओढ़े उपाय को इतुत भटकूं
ज्यूँ की त्यूं सौंप दूँ, बिधि बोल जुलाहे तू
कैसी कैसी रंगरंगीली चादरें बुनता है तू
कैसे कैसे इशारे में समझाता जाता है तू
न मालूम कबसे बुनावट में जुटा हुआ तू
सच कहना जुलाहे, थकता नहीं क्या तू
सच कहना जुलाहे, थकता नहीं क्या तू
13 :46 pm
© Lata 18-06-2017
No comments:
Post a Comment