for non-Hindi friends : This is sweet poetry, where writer felt to break all over the period of time created stone walls and move out in a fresh garden ... to take breath fresh ( in 1st and 2nd stanza ) In 3rd n 4rth after forgetting poet want to go in nature's Lap as lover, and in last stanza where desire are like a Gold Deer and body is feminine (full of emotions symbolic) wisdom is like awakened soul, who dissolves all fake desires under soul's wisdom, and that moment all fake moments also get disabled
(read and see this perspective)
I tried to give best translation ..
(read and see this perspective)
I tried to give best translation ..
संक्षेप में : ये कविता भाव की उस मनःस्थति को संकेत करती है , जिस क्षण सकारात्मकता अपनी खिड़की खोलती है और भीनी भीनी सुगंध से ध्यानी का मन भर उठता है , हृदय पे छायी हुई नकारात्मकता की झीनी चादर गायब होने लगती है , एक उल्लास के साथ एक संकल्प लिए हुए ये कविता अपने उदगार इन शब्दों में प्रकट करती है -
मुद्दतों बाद भीना सा ख्याल आया ........
(after a long time the fragrant thought come up )
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मुद्दतों बाद भीना सा ख्याल आया ........
बहुत कुछ अपने लिए करना है अपने तरीके से जीना है !!
After a long time, the fragrant thought come up
loads of things to do for self and live as my core
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महकते फूलों जैसे कुछ गूंथने है .......सूखते फूल की गंध जैसे कुछ पल, रिहा भी तो करना है !!
Sweet smelled flower need to weave
those moments getting smelled dry like a flower, need to do them free !!
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साफ़ आईने पे गर्द की पर्त छायी हुई
आहिस्ता आहिस्ता मख़मली नर्मी से साफ़ करते जाना है !!
On the clear mirror, there is a thin layer of dust.
very softly slowly-slowly alike silken touch, need to wipe continues.
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मुद्दतों बाद भीना सा ख्याल आया .........
(after a long time the fragrant thought come up )
झरने वादियां मौसम के मिजाज ........
मेरी हसरतों की दुनियाँ तड़प के तेरे गले से लिपट जाना है !!
Lakes valleys and various moods of climate
O my world of core wishes abruptly run to embrace you
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इस पल से जीने की इजाजत ले लूँ .......
रेत-ए-वख्त से मोहलत ले लूँ, इसतरह इसतरफ न आना है !!
Ask a permission from this moment to live.
the grant from slipping time like a sand, this way, this side neither to come
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लम्हे, सुवर्णमृग से चौकड़ी लेते, तुझे -........
रघु तीर से जख्मी, सीता सुख में, 'हा सीते' कह मर जाना है !!.
Trice, takes gallop like a golden deer, you -
Wounded from the arrow of Raghu (Ram / conscious ), in the joy Of Seeta (body) with saying-' Ha site ( last sound) and get to die.
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मुद्दतों बाद भीना सा ख्याल आया ........
(after a long time the fragrant thought come up )
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©Lata
31-05-2017
आशय : *फूलों का अर्थ जीवन के सुखद पलों से लें , सूखते फूल माने जो वख्त बीत गया जिसका कोई अस्तित्व अब नहीं ऐसे पलो को रिहा कर देना ही अच्छा है ,
*साफ़ आईना हमारे आत्मिक भाव का प्रतीक है जो हम सब का है , समय की धूल अगर छायी है , तो अपने साथ नरमी बरतते हुए उसे साफ़ करले ही अच्छा है ,
* प्रकृति की गोद में समां के जो प्रसन्नता संवेदनशीलता आभासित होती है उसे कहने को शब्द पर्याप्त नहीं , वो आनंद की स्थति है , जो किसी कारन दूर थी अब मन प्रकति की गोद में उसे पाना चाहता है , नजदीकी उदाहरण लें तो बिलकुल वैसे ही भवस्थ्ति जैसे किसी प्रेमिका को अपने प्रेमी की आलिंगन में सुख मिलता है ( प्रकृति का सनिध्य इस प्रेमिका के उभरते सुखभाव से भी बड़ी अनुभूति उसे प्रतीत होती है ) , जिसको " वो " कम से कम समय में अधिकतम अनुभव में लेना चाहता है , क्यूंकि समय का रिसाव बहती रेत सा जारी है , जिसका जिक्र आगे की लाईनो में है
* पल से जीने की इजाजत माने इस पल में जीना , और पल ही इजाजत देते है आदमी तो सिर्फ सकारात्म होसकता है , पलों के महत्त्व को समझना और उनसे ही प्रार्थना करना , वो अद्वितीय आनंद उपलब्ध कराएं, क्यूंकि इसी देह से और इसी परिस्थति में दोबारा कौन आया है , यदि पुनर्जन्म या आना मान भी लें तो जेवण नदी के जल जैसा है , उसी जल में दोबारा हाथ कैसे धोयेंगे बाह, धारा में बहता जल तो बह गया , जिस पल हाथ उस जल में धोये बस वो ही पल और वो ही जल अपना है।
* अंतिम की दो पंक्ति में सुवर्णमृग जो इंसानी अदम्य इक्छा का प्रतीक है , ऐसी ही अदम्य कभी न समाप्त होने वाली झिलमिलाती स्वर्ण इक्छा जो अपने ही गुणदोषों से लबालब भरी है ऐसी अनंत इक्छाओं को समेटे उन लम्हो को समर्पित है , जिसमे राम आत्मा / चेतना / देह के स्वामी / चैतन्य / स्वयं परमात्मा कीचड़ में कमलवत रहते है और सीता ऐसे चैतन्य की देह का प्रतीक , देह और इक्छा का सुंदर संयोग है। ईश्वरांश राम (अर्थात आप और हम के अंदर का जीव ) चैतन्य है जो लीला में देह के जीवन और उसकी जिजीविषा को यथासंभव पूरा करने संकल्प लेने का प्रतीक है , जो यथासंभव - यथाशक्ति अपनी देह रुपी सीता की इक्छा पूर्ति के लिए स्वर्ण मृग रुपी लम्हो को जीतने के प्रयास में घायल करते है , पर घायल होते ही वो अपना रूप बदल देते है और उसका वास्तविक राक्षस रूप सामने आता है। यहाँ तनिक सोचियेगा ! हमारे समक्ष हमारी इक्छाये भी ऐसी ही है , सही और गलत की चाशनी में लिपटी मिलगई तो व्यर्थ नहीं मिली तो पागलपन , और यदि मिल भी गयी तो भी कैसे भी प्रभाव वाली हो सकती है, अब ये कह पाना कठिन है की प्रभाव कैसा होगा। इक्छाये हमेशा मृग-मरीचिका सी ही कही गयी है इनमे आज तक भटक के किसी को मंजिल मिलते तो नहीं देखा, हाँ ! और अधिक की प्यास और अधिक की लालसा जरूर जगती है। पर इक्छा और देह का तात्विक-संग-संजोग है इसलिए ऐसी इक्छा मरते वख्त भी देह के लिए ही लालायित रहती है फिर वो भाव कोई भी हो शक्ति का या भक्ति का , और देह भी अज्ञानता में स्वर्ण जैसी मृगमरीचिका इक्छाओं की तरफ आकर्षित , क्यूंकि देह की लालसा- पूर्ति तो इक्छाओं से ही है , और इच्छाओं की नीव देह , इसीलिए मरते मरते भी इक्छा देह का त्याग नहीं कर पाती " हा सीते " इस सन्दर्भ में। किन्तु चेतना यानि राम ऐसी मायावी इक्छा के बहकावे में नहीं आते इसलिए रघु के तीर से माया का जख्मी होना / समाप्त होना ; तो निश्चित ही है।
** अभी भी अंतिम दो पंक्तियों में इतना विस्तार बाकि है जो कहूं तो अभी तो निबंध है फिर शास्त्र बन जायेगा (हास्य) . कुछ प्रश्न छोड़ रही हु आपके चिन्तन केलिए - १- मरीचि ने रूप बदलने का ऐसा स्वांग क्यों किया ! २- सीता का आकर्षण सब जानते हुए भी इतना प्रबल क्यों था ! ३- राम स्वयं ईश्वर थे जो सब रोक सकते थे फिर भी लीला क्यों की ! ५- लम्हे सुवर्ण क्यों ! ६- देह सीता क्यों ! ७- राम को देह की आत्मा क्यों कहा ! ८- रावण और मरीचि के बीच क्या और क्यों सहमति हुई , ९- मरीचि को आखिर इस तरह मरना क्यों स्वीकार हुआ। १०- मृग मरीचिका का इस मरीचि के भाव से क्या सम्बन्ध ! ११- देह का और इक्छाओं का क्या गठबंधन (विवाह) ! १२ - लम्हे झिलमिल करती मारीचिका जैसे क्यों ! १३- हमारी आंतरिक वासनाओं के परिणाम से बंधे लम्हे हमारे सामने ही आये , और अपनी इक्छानुसार अच्छा या बुरा फल देके गए , वख्त जैसा भी था गुजर गया , चाहा हुआ मिल गया तो मिट्टी हो गया और नहीं मिला तो और प्यास बढ़ा गया , यही मरीचिका है क्या , यही लम्हे की मरीचिका , और यही सुवर्ण मृग की मरीचिका है क्या ? १४ - सीता मात्र लालसा से ऊँगली उठाना और राम का सब जानते हुए भी मृग के पीछे जाना , मरीचि का राम का तीर लगने के बाद " हा ! सीते " कहना और मर जाना , " पुरे ग्रन्थ में ये घटना तो कथारूप में बनी हुई बहुत छोटी समझ आती है ,जो मात्र क्रमबद्ध घट गयी , किन्तु इनके अर्थ , इनकी मंशा , इनके कारण , युगों के चक्र पे अत्यंत गंभीर है। स्मरण में सिर्फ ग्रंथ की कथा कथारूप में ही अनेक आलोचनाओं / व्याख्याओं के साथ संग्रहित हो गयी। इतना सोचने के बाद,आपको आखिरी की दो पंक्ति का अर्थ अधिक साफ़ और अधिक स्पष्ट होगा।
अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगी , कविता विषय-विस्तार नहीं है भावइत्र है ,भीनी मौलिक नैसर्गिक सुगंध है , मौलिक नैसर्गिक इसलिए क्यूंकि ये भाव नवजात तो नहीं पर अपने अनुभव की परिपक्वता के कारण अपने ही जन्मस्थल के बहुत करीब है , ( इस कहे पे गौर कीजीयेगा , क्यूंकि उच्चावस्था के ध्यान में ध्यानी की भी यही स्थति है ,) जिसमे कवी एक ऐसी अनुभवजन्य मनःस्थति में आता है जहाँ उन्ही अह्साहो के अनुभव के भाव-छंद बनते है , इन इत्र रूप कहे भाव छंद को , जब दुर्लभ संयोग से कोई ह्रदय से आत्मसात करते है तो द्विगुणित होकर असर होता भी है।
शुभकामनाये !
Message is great itself,no doubt in it for sure but please try to make it simple as it is barely understandable to peoples. I know you regularly post the English version of your poems but hey i don't wanna mess my beautiful experience of hindi.
ReplyDeleteThank you, please don't feel offended it's just a suggestion.
Very warm regards and heartfelt thank you , to come and read poetry , for your suggestion i am taking very postive . i find here clear you feel complex in expression ..
Deletedo you need further explaination ?
i will feel happy to express my core in hindi or english , definitely it will saparate as note below of poetry .
Deletethanks a tons , Dear friend , to encourage me express more , as i have hindi and non hindi friends , all may get happiness .
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