Wednesday, 2 September 2020

क्यूंके जानते हैं सभी ...

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जानते हैं सभी जानां- ये झूठ है

खिलखिलाते हँसते गाते नाचते

रहते हैं  सभी उसके साथसाथ

एक खूबसूरत से सच की तरह

 क्यूंके जानते हैं सभी ...


कुछ ऐसे ही; पेशे या किरदार

उलझे सुलझते जाते धागे जैसे

अपने अपने वख्त पे गाँठ तोड़

चले जाते खरम्मा, सच के साथ

क्यूंके जानते हैं सभी ...


अभिनय को कौन नहीं जानता

कलाओं से कौन वाकिफ नहीं

सभी जानते हैं सब कुछ मगर

रहते हैं खुश एक सच की तरह

क्यूंके जानते हैं सभी ...


नशे की बात  न करें आप क्यूंके

सभी के मयकदे अपने अपने हैं

सभी के प्याले, छलकते जाम हैं

सभी को बोतलें, सभी नशे में है

क्यूंके जानते हैं सभी ...


किरदारों आवाजों संगीत की गूँज

चरसी ठरकी में डूबे धुएं के कश

नशे में नशा और उसमे भी नशा

सजे उजड़ने को  पंडालों की तरह

क्यूंके जानते हैं सभी ...


पुरुष का पुरुषार्थ , स्त्री का समर्पण

रुचि में डूबे बालहठ की उपलब्धियां

उपलब्धियों से जुड़ती जाती सुविधाएँ

सुविधा में खो समाज सुदृढ़ हो जाता

क्यूंके जानते हैं सभी ...


गलत क्या ये कसमसाहट में देखो

बेचैनी में शक्ति के पाखंड में देखो

पीछेपीछे दौड़ते उन चेहरों में देखो

नर्मी के बदलते तेवर गरूर में देखो

क्यूंके जानते हैं सभी ...


और फिर जब सब्र के गगरे छलकते

बैठते भरम दूर करने भरम के साथ

भरमाते विष को काटते विष के साथ

और सच दूर खड़ा मौन इन्तजार में

क्यूंके जानते हैं सभी ...

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