आज ; समक्ष मेरे, तीनो काल-खंड में पसरा एक समय
तीन टुकड़ों में पिछले अगला, और मैं मानो बँट गया हूँ
और मैं , खड़ा हुआ हूँ इस रस्सी के ठीक-ठीक मध्य में
'पिछला' , वो तो सचमुच यादों के साथ पिछला हो चुका
हाथ से फिसल जाता हुआ..अगला पल तो मछली जैसा
और ये पल.. जिसमे खड़ा हूँ शून्य में झूला झूल रहा है
और मैं... पैर ठीक से जमा खड़ा होने की कोशिश में हूँ
कभी विचलित होता... पिछली यादों को पास बुला लेता
जुड़ता तो 'अगले' पल के पास होने की कोशिश करता
अपने 'इस' पल के पास होने का कभी वख्त नहीं मिला
माँ पिता जी निश्चित जुझारू होंगे ठीक नहीं कह सकता
पर, आज उस जुझारूपन को खुद में महसूस करता हूँ
आज लगता है, उनका किया प्रेम भी 'अधिकार' था मुझे
जबकि उस वख्त परमात्मा का दिया वो तोहफा था मुझे
अगला पल मेरे प्रेम पे जब अपना अधिकार समझता है
और मैं ! उस पल को उसकी इक्छा बिना, छू नहीं पाता
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आज मैं महसूस करता हूँ परमात्मा की इस 'सुविधा' को
जो समय की तेज रफ़्तार के साथ खुशबु सी उड़ जाती है
आज बढ़ती उम्र साथ सभी तोहफे को महसूस करता हूँ
तीनो काल में फैला मेरा वजूद, इस पल में कसमसाता हूँ
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